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Tuesday 17 February 2015

शिवरात्रि के पावन पर्व का पावन सन्देश

हिन्दु पुराणों में सृष्टि की शुरुआत में समुद्र मंथन का उल्लेख मिलता है। कथा है कि देवताओं ने अमृत प्राप्ति के लिए दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन किया था जिसमें हलाहल विष के साथ साथ 14 रत्न निकले थे. मानवता का कल्याण करने की कामना रखने वाले भगवान शंकर ने समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष सेवन कर संपूर्ण जगत की रक्षा की थी. समुद्र मंथन का प्रतीकात्मक रूप आज से भी गहरे जुड़ा है। विद्वानों ने समुद्र को मानव मन का प्रतीक माना है इसलिए समुद्र मंथन का एक अर्थ मनुष्य के मन के मंथन से भी जुड़ा है।
हम जब भी अपने मन में विचारों का मंथन करते हैं तो सबसे पहले बुरे विचार ही बाहर आते हैं क्यों कि मन के भीतर सबसे ज्यादा बुरे विचार ही पनपते हैं शिव का हलाहल विष का पीना इस बात का प्रतीक है कि जब आत्म मंथन से कोई बुराई निकले तो उसे समाज में न फैलने दिया जाए बल्कि कुछ उपाय द्वारा उसका ऐसा शमन किया जाय कि समाज में कोई दुष्प्रभाव न हो.
बहुत सारे अच्छे भावों के साथ सबसे अंत में जो ब्रह्मज्ञान, परमज्ञान निकलता है उसकी तुलना हम अमृत की प्राप्ति से कर सकते हैं.
महाशिवरात्रि एकमात्र ऐसी कालरात्रि है, जो मनुष्यों को पापकर्म, अन्याय और अनाचार से दूर रहकर पवित्र एवं सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा देती है।