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Friday 18 October 2013

हमारे शब्द

भारतीय आध्यात्मिक दर्शन के अनुसार सारी सृष्टि का निर्माण मात्रिका वर्णों से हुई है। मात्रिका वर्णों से ही हम अपनी भावनाओं को , अपनी इच्छाओं को, अपनी समस्याओं को मूर्त रूप प्रदान करते हैं। तात्पर्य यह कि हमारी हर गतिविधि शब्दों के दायरे में सिमटी होती है। हमारे शब्द जितने संयमित और संतुलित होते हैं हमारी गतिविधियाँ उतनी ही शिष्ट और संतुलित होती है।
      ये शब्द चाहे हमारे अन्दर के हो या बाहर के। हमारे  अंदर के शब्द (सोच) हालांकि हमेशा दिखते  नहीं है। हम उसे दबाकर रखते हैं। सार्वजनिक स्थल पर हम अपने  बाहर के शब्द (सोच ) से काम चलाते हैं, जो प्राय: हमारे अंदर के शब्द से मेल नहीं खाते । जबकि वास्तविकता  में हर जगह हमारे अंदर के शब्द ही हमें संचालित करते हैं। हमारे अंदर के शब्द जितने साफ़ और सुलझे होंगे हमारे बाहर के शब्द और गतिविधियाँ भी उतनी ही सुलझी होगी। हमें अपने अंदर और बाहर के शब्दों में संतुलन रखना चाहिए ताकि जीवन क्षेत्र की हमारी हर गतिविधियाँ भी संतुलित रहे और  जीवन में कहीं हमारे कदम रुके नहीं।       

Friday 20 September 2013

पूर्वजों के प्रति श्रधा अर्पित करने का दिन

आज से १५ दिन का पितृ पख प्रारंभ हो गया है।  यह पूर्वजों के प्रति श्रधा अर्पित करने का दिन है। इन दिनों अपने पूर्वजों का श्राद्ध तर्पण के माध्यम से किया जाता है।
हम सभी अपने पूर्वजों के ही पुण्य प्रताप से जीवन में आगे बढ़ते हैं। अत: हमारा कर्तव्य है कि हम अपने पूर्वजों को हमेशा सम्मान दें।  खासकर पितृ पख के इस पावन दिनों में उनका स्मरण कर उनसे आशीर्वाद लेना और उनके मुक्ति के लिए उनके उच्चतम अवस्था के लिए प्रार्थना करना हमारा धर्म है।
इसके लिए करना कुछ खास नहीं है।
बस प्रतिदिन कुछ क्षण के लिए अपने सभी पितरों का नाम श्रधा से लेना है और उन्हें सबकुछ के लिए धन्यवाद देना है।  इसके बाद उनसे सुखी भविष्य के लिए आशीर्वाद मांगना है।  अंत में ईश्वर से उनकी मुक्ति के लिए प्रार्थना करते हुए ध्यान करना है कि वे मुक्त होकर अनंत आकाश में विलीन हो रहे है।  इसके बाद तीन बार बोलना है -  ॐ शांति  ॐ शांति  ॐ शांति।
                                            श्रधा अर्पित कर देखिए अदभुत ख़ुशी मिलेगी।
  

Monday 16 September 2013

अपनी आन्तरिक शक्ति को पहचाने

तात्पर्य यह कि मार्ग दिखलाने वाले को हमेशा सावधान होना चाहिए। रामायण के उपरोक्त घटना में राम मार्गदर्शक  थे। किसी का अनुसरण करने से पूर्व  उन्हें सावधानी से स्थिति  को समझना चाहिए था।
                                      वास्तव में हनुमान ने अपने आत्मा  में बस रहे राम रुपि ईश्वरीय शक्ति से पत्थर को शक्तिशाली कर पानी में फेंका था, इसलिए वह  नहीं डूबा,  जबकि राम ने अहम् भाव से फेंका उन्होंने अपने नाम मात्र को सर्वश्रेष्ठ समझ लिया उसमें निहित हनुमान के विश्वास की शक्ति को नजरअंदाज कर दिया फलत: उनके द्वारा फेंका पत्थर डूब गया।  
                                 प्रश्न यह कि  हम इस घटना से क्या सीखें ………………………………. क्रमश:


सबसे अव्वल बात भगवान राम ने हमारे सामने इस उदाहरण को रखा है तो वजह भी खास ही हमें ढूढनी चाहिए।            
               प्रथम   भगवान राम ने अपने उदाहरण के द्वारा हमें बताया कि अहम् हमारी शक्ति को नष्ट कर देती है।  इसलिए हमें हमेशा अपने अहम् को अपने ऊपर हाबी होने से रोकना है।        
                द्वितीय  हमें अपने आन्तरिक ईश्वरीय शक्ति को हनुमान की  तरह हमेशा याद रखना चाहिए। जिस तरह हनुमान हर पल राम  यानि अपने इश्वरिये शक्ति के साथ जुड़े रहते  थे हमें भी हर पल अपने ईश्वरीय शक्ति के साथ जुड़े रहना चाहिए ताकि हनुमान की तरह हम भी अपने हर लक्ष्य को सहजता से प्राप्त कर लें।           
                      तीसरा हम हर पल सजग रहें , किसी का अंधानुकरण ना करें।  राम ने हनुमान का अन्धानुकरण किया और असफल रहे।              
   अन्तत:  
                         अपनी ईश्वरीय शक्ति पहचानने और जगाने के लिए भक्त हनुमान की तरह अटूट विश्वास के साथ अपने ह्रदय में स्थित विश्वास की शक्ति के साथ जुड़ना जरूरी है।     

Saturday 14 September 2013

रामायण की एक घटना .................श्रीमद भगवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण

 रामायण की एक घटना है - नदी में सेतु बनाने बाँधने की......................…………………………………
.................................................................................................................................   राम ने सोचा वाह मेरा नाम लिखा पत्थर जब नहीं डूब रहा है तो मेरे  स्वयं के  द्वारा   पत्थर  फेंकने  से  तो  वह निश्चित ही नहीं डूबेगा।  ऐसा सोचकर वे पत्थर पानी में फेंकने लगे , पर ये क्या? राम के द्वारा फेंके पत्थर डूब रहे थे?

प्रश्न - आखिर ऐसा क्यों हो रहा  था?……………………. क्रमश:

श्रीमद भगवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण  ने कहा  है  कि
                                       " यदि ह्ग्हं  न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रित:।
                                         मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश:। । "

अर्थात
            यदि कदाचित मै सावधान होकर कर्मो में ना बरतूं तो बड़ी हानि  हो जाए क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं। 
                                         तात्पर्य यह कि मार्ग दिखलाने वाले को हमेशा सावधान होना चाहिए। रामायण के उपरोक्त घटना में राम मार्गदर्शक  थे। किसी का अनुसरण करने से पूर्व  उन्हें सावधानी से स्थिति  को समझना चाहिए था।
                                      वास्तव में हनुमान ने अपने आत्मा  में बस रहे राम रुपि ईश्वरीय शक्ति से पत्थर को शक्तिशाली कर पानी में फेंका था, इसलिए वह  नहीं डूबा,  जबकि राम ने अहम् भाव से फेंका उन्होंने अपने नाम मात्र को सर्वश्रेष्ठ समझ लिया उसमें निहित हनुमान के विश्वास की शक्ति को नजरअंदाज कर दिया फलत: उनके द्वारा फेंका पत्थर डूब गया। 
                                 प्रश्न यह कि  हम इस घटना से क्या सीखें ………………………………. क्रमश:

Thursday 12 September 2013

रामायण की एक घटना है - नदी में सेतु बनाने बाँधने की

 रामायण की एक घटना है - नदी में सेतु बनाने बाँधने की. लंका विजयी के लिए जाते समय जब रास्ते में मिले नदी पर सेतु बनाने की बात आई तो हनुमान ने राम लिखा पत्थर नदी में फेंकना प्रारंभ किया। पत्थर  पानी पर तैरने लगा और रास्ता तैयार होने लगा. राम को उत्सुकता हुई कि आखिर हनुमान द्वारा फेंका  पत्थर पानी पर  तैर कैसे रहा है? उन्होंने हनुमान से इसका राज पूछा।  हनुमान ने कहा मैं हर पत्थर पर आपका नाम लिखकर फेंक रहा हूँ और वह तैर रहा है।  राम ने सोचा वाह मेरा नाम लिखा पत्थर जब नहीं डूब रहा है तो मेरे  स्वयं के  द्वारा   पत्थर  फेंकने  से  तो  वह निश्चित ही नहीं डूबेगा।  ऐसा सोचकर वे पत्थर पानी में फेंकने लगे , पर ये क्या? राम के द्वारा फेंके पत्थर डूब रहे थे?

प्रश्न - आखिर ऐसा क्यों हो रहा  था?……………………. क्रमश:  

Sunday 28 July 2013

न्यास क्रिया चक्रों

जब मानव ह्रदय में किसी वस्तु की इच्छा होती है तो वह उसके लिए प्रयास करता है. परन्तु हमेशा सभी इच्छाएँ पूर्ण नहीं होती है. जब मानव की इच्छा पूर्ण नहीं होती है तो उसका ह्रदय विचलित होता है. उसे क्रोध आता है, दुख होता है और तब उसके ह्रदय में आक्रोश का जन्म होता है इन सब नकारात्मक विचारों से उसका संतुलन बिगड़ जाता है. जीवन में हर तरह की समस्या आने लगती है सामाजिक, आर्थिक आदि ….
           ये सभी प्रक्रिया अनाहत चक्र में प्रारंभ होती है और मूलाधार में संग्रहित होती जाती है और लगातार बढती चली जाती है. इस परिसिथिति से बाहर निकलने के लिए चक्रों में संतुलन की स्थापना आवश्यक है. न्यास क्रिया चक्रों में इसी संतुलन को स्थापित कर मानव जीवन में आए विषमताओं का नाश करती है .


Sunday 14 July 2013

Vacuuming 

When we worry about someone, blame ourselves for a person's misery, or massage someone who's in emotional pain,The angles gives  methods to take on their negative psychic energy .

To vacuum yourself with the help of angles, 

do these steps : -  

1. take three deep breathes. 

 2. mentally say - Archangel michael , I call upon you now to clear and vacuum                           the effect of fear. Then you see or feel  mentally a large being appears - this is Archangel michael. 

3. Notice that michael is holding a vacuum tube. just say - archangel michael please deposit the vacuum tube through the crown chakra and suction away toxic, fear-based, or entity energy. 

                   See and feel the vacuum tube completely cleaning the entire inside of the body (including organs, muscles and bones) from head to toe. keep vacuuming until the body feels quite.

4. When you feel relaxed say - thank you michael for this healing. Please now fill the body with your diamond - bright white light to heal and protect. 


 


Monday 8 July 2013

जप पर स्वामी विवेकानंद के साथ प्रश्नोत्तर

प्र.-जप कैसे और कब करना चाहिए?

उ.- पूजा या उपासना का अर्थ है-प्रायाणाम ,ध्यान और किसी मंत्र विशेष का जप। ध्यान हमें भीतर लगाकर
      जप के लिए बैठना चहिये।

प्र.- कभी कभी जप में थकान होने लगती है. तब क्या करना चाहिए?

उ -दो कारणों से जप में थकान होती है। कभी कभी मस्तिष्क थक जाता है और कभी कभी आलस्य के  परिणामस्वरूप ऐसा होता है। यदि प्रथम कारण है, तो उस समय कुछ क्षण तक जप छोड़ देना चाहिए। क्योंकि हठपूर्वक जप में लगे रहने रहने से विभ्रम या विक्षिप्तावस्था आदि आ जाती है। परन्तु यदि द्वितीय कारण है तो मन को बलात जप में लगाना चाहिए।   

प्र.- यदि मन इधर-उधर भागता रहे, तब भी क्या देर तक जप करते रहना चाहिए?

उ.- हाँ, उसी प्रकार जैसे अगर किसी बदमाश घोड़े की पीठ पर कोई अपना आसन जमाये रखे तो वह उसे वश में कर लेता है।   

Thursday 23 May 2013

Home Remedies for Ulcers/Sores in Mouth, Tongue and Gum




1. This is the tested method, Please look at your toothpaste and see in the ingredients mentioned on the toothpaste cover. If you find this element “Sodium laureth sulfate” this is included in most of the toothpaste.
Please change using it and look for SLS free toothpaste or use Dant Manjans (ayurvedic tooth powder).

2. Apply salt on the ulcers. It will be painful at the start but it will remain only for minutes.

3. Apply Two drops of tea tree oil, right on the sore ulcer. It relieves the pain immediately and tge antiseptic qualities promote healing. It will stop the sore from getting worse.

4. Drinking buttermilk or applying ghee also helps in soothing ulcers.

5. Applying B-actif comfrey extract has proved in resolving big mouth ulcers. You will find this item at health food store or chemist.

6. Applying honey directly at the sore also helps in relieving ulcers due to its antibacterial property.

7. Eating yogurt with salt is also beneficial which help in speeding the healing process.

8. Chewing 5-6 leaves of holy basil (tulsi) and drink water. This also helps to cure mouth ulcers.

9. Mix a pinch of turmeric powder and 1 tsp glycerine and apply it on the sore. To get relief

10. Peppermint oil is great for quick relief from the pain and Raw onions are also good for ulcers as they contain sulphur. Eat them raw in salads.

11. Gargle with Fresh coconut milk is an excellent method. Do it three or four times a day to keep the mouth clean and ease the pain of an ulcer.

12. Apply Coconut oil directly at the sore it kills harmful bacteria.

13. Eat more Vitamin C and B food items like orange, bananas, tomato, papaya, etc.

14. Avoid liquor during ulcers.

Friday 10 May 2013

दंतरोग में उपाय

प्रतिदिन जितनी बार मल-मूत्र का त्याग करें, उतनी बार दांतों की दोनों पंक्तियों को मिलाकर जरा जोर से दबाये रखें। जब तक मल और मूत्र निकलता रहे तब तक दांतों से दांत मिलाकर दबाए रखना चाहिए। लगातार ऐसा करने से कमजोर दांतों की जड़ मजबूत हो जायगी। सदा इसका अभ्यास करने से दन्तमूल दृढ़ हो जाता है और दांतों में किसी प्रकार की बीमारी  होने का कोई डर नही रहता है।  

Tuesday 7 May 2013

correct way of eating fruits?

  • EATING FRUIT...

    We all think eating fruits means just buying fruits, cutting it and just popping it into our mouths. It's not as easy as you think. It's important to know how and when to eat.

    What is the correct way of eating fruits?

    IT MEANS NOT EATING FRUITS AFTER YOUR MEALS! 
    * FRUITS SHOULD BE EATEN ON AN EMPTY STOMACH.
    If you eat fruit like that, it will play a major role to detoxify your system, supplying you with a great deal of energy for weight loss and other life activities. 

    FRUIT IS THE MOST IMPORTANT FOOD. 
    Let's say you eat two slices of bread and then a slice of fruit. The slice of fruit is ready to go straight through the stomach into the intestines, but it is prevented from doing so.

    In the meantime the whole meal rots and ferments and turns to acid. The minute the fruit comes into contact with the food in the stomach and digestive juices, the entire mass of food begins to spoil....

    So please eat your fruits on an empty stomach or before your meals! You have heard people complaining — every time I eat watermelon I burp, when I eat durian my stomach bloats up, when I eat a banana I feel like running to the toilet, etc — actually all this will not arise if you eat the fruit on an empty stomach. The fruit mixes with the putrefying other food and produces gas and hence you will bloat!

    Grey hair, balding, nervous outburst, and dark circles under the eyes all these will NOT happen if you take fruits on an empty stomach.

    There is no such thing as some fruits, like orange and lemon are acidic, because all fruits become alkaline in our body, according to Dr. Herbert Shelton who did research on this matter. If you have mastered the correct way of eating fruits, you have the Secret of beauty, longevity, health, energy, happiness and normal weight.

    When you need to drink fruit juice - drink only fresh fruit juice, NOT from the cans. Don't even drink juice that has been heated up. Don't eat cooked fruits because you don't get the nutrients at all. You only get to taste. Cooking destroys all the vitamins.

    But eating a whole fruit is better than drinking the juice. If you should drink the juice, drink it mouthful by mouthful slowly, because you must let it mix with your saliva before swallowing it. You can go on a 3-day fruit fast to cleanse your body. Just eat fruits and drink fruit juice throughout the 3 days and you will be surprised when your friends tell you how radiant you look!

    KIWI: Tiny but mighty. This is a good source of potassium, magnesium, vitamin E & fiber. Its vitamin C content is twice that of an orange.
    APPLE:
    An apple a day keeps the doctor away? Although an apple has a low vitamin C content, it has antioxidants & flavonoids which enhances the activity of vitamin C thereby helping to lower the risks of colon cancer, heart attack & stroke.


    STRAWBERRY: Protective Fruit. Strawberries have the highest total antioxidant power among major fruits & protect the body from cancer-causing, blood vessel-clogging free radicals.

    ORANGE : Sweetest medicine. Taking 2-4 oranges a day may help keep colds away, lower cholesterol, prevent & dissolve kidney stones as well as lessens the risk of colon cancer.

    WATERMELON: Coolest thirst quencher. Composed of 92% water, it is also packed with a giant dose of glutathione, which helps boost our immune system. They are also a key source of lycopene — the cancer fighting oxidant. Other nutrients found in watermelon are vitamin C & Potassium.

    GUAVA & PAPAYA: Top awards for vitamin C. They are the clear winners for their high vitamin C content.. Guava is also rich in fiber, which helps prevent constipation. Papaya is rich in carotene; this is good for your eyes.

    Drinking Cold water after a meal = Cancer! Can u believe this?? 
    For those who like to drink cold water, this article is applicable to you. It is nice to have a cup of cold drink after a meal. However, the cold water will solidify the oily stuff that you have just consumed. It will slow down the digestion. Once this 'sludge' reacts with the acid, it will break down and be absorbed by the intestine faster than the solid food. It will line the intestine. Very soon, this will turn into fats and lead to cancer. It is best to drink hot soup or warm water after a meal.

    A serious note about heart attacks HEART ATTACK PROCEDURE': (THIS IS NOT A JOKE!) Women should know that not every heart attack symptom is going to be the left arm hurting. Be aware of intense pain in the jaw line. You may never have the first chest pain during the course of a heart attack. Nausea and intense sweating are also common symptoms. Sixty percent of people who have a heart attack while they are asleep do not wake up. Pain in the jaw can wake you from a sound sleep. Let's be careful and be aware. The more we know the better chance we could survive.
    Source : Email from Jaishri Iyer

Sunday 5 May 2013

नकारात्मक शक्तियां नष्ट कैसे करें?


हमारी ज्यादातर समस्या हमारे दिमाग से संचालित होती है। आज ज्यादातर लोग अपनी तरक्की पर विचार करने से ज्यादा दूसरे की तरक्की को रोकने की फ़िक्र में लगे रहते है।
निर्णायक प्रश्न यह है कि क्या आज मानवता, समस्याओं के अनियंत्रित होने से पहले कोई हल निकाल पाएगी। 
व्यक्तिगत स्तर पर तो मानवता की अच्छे भविष्य के लिए दौड़ जारी है। परन्तु आज इतने मात्र से समस्या का हल संभव नहीं है। 
इस संकट काल में सकारात्मक विचारधारा वाले मानव को एकजुट होकर पूंजीकृत चेतना शक्ति के द्वारा सभी के दिमाग से सारे नकारात्मक विचारों को बाहर निकलना होगा ताकि समस्याओं के अनियंत्रित होने से पहले कोई हल निकल आए।
इसके लिए करना ज्यादा कुछ भी नहीं है.
दिनभर में किसी समय थोड़ी देर के लिए शांतचित्त होकर बैठ जाएँ। आखें बंदकर ध्यान करे कि आपका हाथ करोड़ों सकारात्मक विचारधारा वाले हाथ से जुड़े हैं। मानसिक रूप से ध्यान करे कि सभी के सिर से दिव्य ज्योति एक साथ निकल रही है और संपूर्ण संसार में धीरे धीरे फ़ैल रही है. सारा संसार दिव्य ज्योति से भर गया है सभी जगह की नकारात्मक शक्ति नष्ट हो गई है। प्रतिदिन के इस अभ्यास से निश्चित ही धीरे धीरे संपूर्ण संसार दिव्य ज्योति से भर जायगा और सारी नकारात्मक शक्तियां नष्ट हो जाएगी।


Saturday 27 April 2013

गुरुगीता में गुरु के विशिष्ट लक्षण

गुरुगीता में गुरु के विशिष्ट लक्षण

१.  "एक  एव गुरुर्देवि " गुरु केवल एक है।
२. "सर्वत्र प्रीगियते " वे ही अनेक रूपों में विद्यमान हैं। 
३. "सर्वं गुरुमय जगत"   समस्त जगत गुरु-मय है।
४. "गुरुस्त्वमसि देवेशि मन्त्रॉअपि गुरुच्यते " भगवती पार्वती (शक्ति ) एव मन्त्र भी गुरु है।
५. "अतो मन्त्रे गुरौ देवे न भेदश्च प्रजायते "  मन्त्र, गुरु एवं देवता - इन तीनों में कोई भेद नहीं (पृथकता ) नहीं
      है।
६. "गुरु:पिता गुरुर्माता गुरुर्देवो महेश्वर: " गुरु ही पिता, माता, देवता, महेश्वर है।
७. गुर के शरीर में ब्रह्मा ,महेश्वर ,पार्वती ,इंद्रादिक ,देवता , कुबेरादिक यक्षगण ,सिद्धगण ,गन्धर्वगण गंगादिक
     नदियाँ ,नागगण एवं समस्त स्थावरजंगम आदि सभी निवास करते है।     
 ८. "गुरौ मनुष्यता बुद्धि: शिष्यानां यदि जायते। न हि तस्य भवेत सिद्धि: कल्पकोटिशतैरपि "  यदि कोई गुरु
      को मनुष्य मान ले तो करोड़ों कल्पों में भी उसे साधना में सफलता नहीं मिल सकती। 

  





Monday 22 April 2013

सबसे बड़ी पूजा

सबसे बड़ी पूजा किसे कहते हैं?
इस जिज्ञासा के उत्तर में भगवान कहते हैं -
 सारी क्रिया परमात्मा को  अर्पित कर अक्रिया भाव में अवस्थित रहना सबसे बड़ी पूजा है।
भगवान् शंकर कहते हैं - मानव शरीर दिव्य शक्तियों और शक्ति मंत्रो का अपना अधिष्ठान है। इसलिए इसे देवालय कहते हैं। इसमें प्रधान रूप से जिस देवता का निवास है,वही जीव कहलाता है। शास्त्र में इसे सदाशिव कहते हैं।  इसके ऊपर अज्ञान का आवरण चढ़ा रहता है। अज्ञान के इस आवरण को  हटाना ही पूजा है।     
                                                                                                                                    कुलार्णवतंत्र 

प्रेम क्या है ?

एक शिष्य  ने रामकृष्ण परमहंस से पूछा - प्रेम क्या  है ?
रामकृष्ण परमहंस ने कहा - प्रेम कई प्रकार के  होते है। जैसे -
साधारण
समंजस
और समर्थ
साधारण - इस प्रेम में प्रेमी सिर्फ अपना ही सुख देखता है। वह  इस  बात की चिंता नहीं करता कि दूसरे व्यक्ति को भी उससे सुख है कि नहीं।
समंजस - इस प्रेम में  दोनों एक दूसरे के सुख के इक्छुक होते हैं। 
समर्थ -  यह सबसे उच्च दर्जे का प्रेम है। इस प्रेम में प्रेमी  कहता है - तुम सुखी रहो, मुझे चाहे कुछ भी हो। राधा में ये प्रेम विद्यमान था। श्रीकृष्ण के सुख में ही उन्हें सुख था। हनुमान में भी  ये प्रेम विद्यमान था। श्रीराम  के सुख में ही उन्हें सुख था।
                                     यह प्रेम तभी पैदा हो सकता है जब व्यक्ति अपने अहम् को मिटाकर स्वयं को अपने प्रेमी में समाहित कर दे। जैसे राधा या हनुमान ने किया। 
     

Wednesday 10 April 2013

न्यास का अर्थ

ज्ञानार्णवतंत्र के अनुसार  -
        न्यास  का अर्थ है - स्थापना। बाहर और भीतर के अंगों में इष्टदेवता और मन्त्रों की  स्थापना ही न्यास है।
इस स्थूल शरीर में अपवित्रता का ही साम्राज्य है,इसलिए इसे देवपूजा का तबतक अधिकार नहीं है जबतक यह शुद्ध एवम दिव्य न हो जाये। जबतक इसकी (हमारे शरीर की  )अपवित्रता बनी  है, तबतक इसके स्पर्श और स्मरण से चित में ग्लानि  का उदय होता रहता है। ग्लानियुक्त चित्तप्रसाद और भावाद्रेक से शून्य होता है, विक्षेप और अवसाद से आक्रांत होने के कारण बार-बार मन प्रमाद और तन्द्रा से अभिभूत हुआ करता है। यही  कारण है कि मन न तो एकसार स्मरण ही कर सकता है और न विधि-विधान के साथ किसी कर्म का सांगोपांग अनुष्ठान ही।
                         इस दोष को मिटाने के लिए न्यास सर्वश्रेष्ठ उपाय है। शरीर के प्रत्येक अवयव में जो क्रिया सुशुप्त हो रही है, हृदय के अंतराल में जो भावनाशक्ति मुर्छित  है, उनको जगाने के लिए न्यास अचुक  महा औषधि है।
     शास्त्र में यह बात बहुत जोर देकर कही गई है कि केवल न्यास के द्वारा ही देवत्व की प्राप्ति और मन्त्रसिद्धि हो जाती है। हमारे भीतर-बाहर अंग-प्रत्यंग में देवताओं का निवास है, हमारा अन्तस्तल और बाह्रय शरीर दिव्य हो गया है - इस भावना से ही अदम्य उत्साह, अदभुत स्फूर्ति और नवीन चेतना का जागरण अनुभव होने लगता है। जब न्यास सिद्ध हो जाता है तब भगवान् से एकत्व स्वयंसिद्ध हो जाता है। न्यास का कवच पहन लेने पर कोई भी आध्यत्मिक अथवा आधिदैविक विघ्न पास नहीं आ सकते है और हमारी मनोवांछित इच्छाएं पूर्णता को प्राप्त करती है।

ज्ञानार्णवतंत्र के अनुसार न्यास के प्रकार
     न्यास कई प्रकार के होते है।
1. मातृका न्यास - १. अन्तर्मातृका न्यास  २. बहिर्मातृका न्यास  ३ संहारर्मातृका न्यास
2. देवता न्यास
3. तत्व न्यास
4. पीठ न्यास
5. कर न्यास
6. अंग न्यास
7. व्यापक न्यास
8. ऋष्यादि  न्यास
               इनके अतिरिक्त और भी बहुत से न्यास है,  जिनके द्वारा  हम अपने शरीर के असंतुलन को  ठीक कर शरीर को देवतामय बना सकते है। सभी न्यास का एक विज्ञान है और यदि नियमपूर्वक किया जाय तो ये हमारे शरीर और अंत:करण  को दिव्य बनाकर स्वयं ही अपनी महिमा का अनुभव करा देते है। 

 न्यास का  महत्त्व
न्यास का हमारे जीवन  में बहुत महत्त्व है। जब शरीर के रोम-रोम में न्यास कर लिया जाता है, तो मन को इतना अवकाश ही नहीं मिलता और इससे अन्यत्र कहीं स्थान नहीं मिलता कि वह और कहीं जाकर भ्रमित हो जाय। शरीर के रोम-रोम में देवता, अणु-अणु में देवता और देवतामय शरीर। ऐसी स्थिति में  हमारा मन दिव्य हो जाता है। न्यास से पूर्व जड़ता की स्थिति होती है। जड़ता के चिंतन से और अपनी जड़ता से यह संसार मन को जड़ रूप में प्रतीत होता है। न्यास के बाद इसका वास्तविक चिन्मय  स्वरूप स्फुरित होने लगता है और केवल चैतन्य ही चैतन्य रह जाता है।   
 इसी निमित्त न्यास योग के प्रवर्तक  हमारे गुरु - डा . बी . पी . साही ने न्यास साधना को न्यासयोग में तब्दील किया। इस योग के माध्यम से शरीर, मन और  आत्मा में संतुलन स्थापित करना सिखाया जाता है यही तंत्र, मंत्र और हर साधना का अंतिम लक्ष्य है। न्यास योग के माध्यम से गुरु जन-जन में साधना का सही स्वरूप निरुपित कर देना चाहते है ताकि  समाज का हर व्यक्ति स्वस्थ हो, प्रसन्न हो।             

न्यास का महत्त्व

न्यास का हमारे जीवन  में बहुत महत्त्व है। जब शरीर के रोम-रोम में न्यास कर लिया जाता है, तो मन को इतना अवकाश ही नहीं मिलता और इससे अन्यत्र कहीं स्थान नहीं मिलता कि वह और कहीं जाकर भ्रमित हो जाय। शरीर के रोम-रोम में देवता, अणु-अणु में देवता और देवतामय शरीर। ऐसी स्थिति में  हमारा मन दिव्य हो जाता है। न्यास से पूर्व जड़ता की स्थिति होती है। जड़ता के चिंतन से और अपनी जड़ता से यह संसार मन को जड़ रूप में प्रतीत होता है। न्यास के बाद इसका वास्तविक चिन्मय  स्वरूप स्फुरित होने लगता है और केवल चैतन्य ही चैतन्य रह जाता है।   

Monday 8 April 2013

न्यास के प्रकार

ज्ञानार्णवतंत्र के अनुसार न्यास के प्रकार 
     न्यास कई प्रकार के होते है। 
1. मातृका न्यास - १. अन्तर्मातृका न्यास  २. बहिर्मातृका न्यास  ३ संहारर्मातृका न्यास
2. देवता न्यास 
3. तत्व न्यास 
4. पीठ न्यास 
5. कर न्यास 
6. अंग न्यास 
7. व्यापक न्यास 
8. ऋष्यादि  न्यास 
               इनके अतिरिक्त और भी बहुत से न्यास है,  जिनके द्वारा  हम अपने शरीर के असंतुलन को  ठीक कर शरीर को देवतामय बना सकते है। सभी न्यास का एक विज्ञान है और यदि नियमपूर्वक किया जाय तो ये हमारे शरीर और अंत:करण  को दिव्य बनाकर स्वयं ही अपनी महिमा का अनुभव करा देते है।  
  

Friday 29 March 2013

आधुनिकता एवं आध्यात्मिकता के संगम हमारे गुरु - डा. बी. पी.साही के जन्मदिन पर सादर चरण स्पर्श

न्यास योग के प्रवर्तक  हमारे गुरु - डा . बी . पी . साही (गुप्तावधुत श्री योगानन्दनाथ  गिरि ) किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।  पिछले तीस साल से न्यास योग के माध्यम से लोक कल्याण  के क्षेत्र में अपनी मौन सेवा दे रहे हैं।
                          
                              सरल, सहज, सह्र्दय, कोमल वाणी,  चेहरे पर गौरवमयी मुस्कान और हर पल अदम्य उत्साह से ओत-प्रोत हमारे गुरूजी हमारी शक्ति पुंज हैं।  
                            
                                 पहली बार  जब मैं गुरूजी से मिली तो  उनका मुझसे प्रश्न था - "आप यहाँ क्यों आई हैं। " न्यास योग के एलिमेंट्री क्लास में उनकी ही एक शिष्या के द्वारा वहाँ ले जाई  गई थी मैं। नहीं जानती थी न्यास योग के बारे में और ना ही गुरूजी के बारे में। अचानक के सवाल का कुछ जवाव नहीं सुझा कह गई "आपको ही जानने आई हूँ। " बड़े जोर से हँसे गुरूजी - "मुझे जानने !" 

                            तब से उन्हें जानने की कोशिश में लगी हूँ। उनके जितने करीब जाती हूँ, उतने ही गहरे पाती हूँ। उनकी गहराई का ज्ञान तो हमें नहीं होता, पर पूर्ण विश्वास के साथ उस गहराई में उतरती चली जाती हूँ। जानती हूँ किनारे पर गुरु का हाथ मजबूती से हमें थामे है। 

                           आज आप  हमारे सिर्फ न्यास गुरु नहीं हैं, आध्यात्मिक गुरु भी हैं। परम्परागत गुरु की पहचान से अलग आधुनिकता के लिवास में दिखते हमारे गुरूजी ने साधना के चरम  ऊँचाई  को छू रखा है। आठ  वर्ष की उम्र से ही आपने अपने  गुरु परमहंसावधुत श्री रामानंदनाथ गिरि  संस्थापक, जयंती माता मंदिर, वनहुगली, कलकत्ता  के सानिध्य में जप, ध्यान और कठोर साधना की हर सीढ़ी को लाँघकर माँ आदया की कृपा प्राप्त की है। हमें एहसास है कि माँ आद्या आपकी वाणी में हैं, पर आप निर्लिप्त, सहज और सरल हैं। आपने सिखाया है - "बस अभिमान त्याग दो, सबकुछ मिल जाएगा।  " --

                              सबसे कठिन मानी जाने वाली तंत्र- साधना को गुरूजी ने सरल और सहज बना दिया। उनकी शिक्षा है - प्रवृति पर नियंत्रण, मनोवृति में बदलाव और चित्त शक्ति के विलास में विश्वास ही तंत्र-साधना है।  उनके अनुसार - "तंत्र-साधना कुछ पाने का माध्यम नहीं है, यह तो लोक-कल्याण के लिए स्वयं को मजबूत बनाने  का साधन है। "

      इसी निमित्त उन्होंने न्यास साधना को न्यासयोग में तब्दील किया। इस योग के माध्यम से शरीर, मन और  आत्मा में संतुलन स्थापित करना सिखाया जाता है यही तंत्र, मंत्र और हर साधना का अंतिम लक्ष्य है। न्यास योग के माध्यम से गुरु जन-जन में साधना का सही स्वरूप निरुपित कर देना चाहते है ताकि  समाज का हर व्यक्ति स्वस्थ हो, प्रसन्न हो।  

 By - Dr. Reeta Singh, nyasyog master
 Website - www.nyasyog.com
 Facebook -  www.facebook.com/nyasyog
                                                           
                                          
                         

Thursday 28 March 2013

शास्त्र में न्यास


ज्ञानार्णवतंत्र के अनुसार  -
          न्यास का अर्थ है - स्थापना। बाहर और भीतर के अंगों में इष्टदेवता और मन्त्रों की  स्थापना ही न्यास है। 
इस स्थूल शरीर में अपवित्रता का ही साम्राज्य है,इसलिए इसे देवपूजा का तबतक अधिकार नहीं है जबतक यह शुद्ध एवम दिव्य न हो जाये। जबतक इसकी (हमारे शरीर की  )अपवित्रता बनी  है, तबतक इसके स्पर्श और स्मरण से चित में ग्लानि  का उदय होता रहता है। ग्लानियुक्त चित्तप्रसाद और भावाद्रेक से शून्य होता है, विक्षेप और अवसाद से आक्रांत होने के कारण बार-बार मन प्रमाद और तन्द्रा से अभिभूत हुआ करता है। यही  कारण है कि मन न तो एकसार स्मरण ही कर सकता है और न विधि-विधान के साथ किसी कर्म का सांगोपांग अनुष्ठान ही। 
                         इस दोष को मिटाने के लिए न्यास सर्वश्रेष्ठ उपाय है। शरीर के प्रत्येक अवयव में जो क्रिया सुशुप्त हो रही है, हृदय के अंतराल में जो भावनाशक्ति मुर्छित  है, उनको जगाने के लिए न्यास अचुक  महा औषधि है।
     शास्त्र में यह बात बहुत जोर देकर कही गई है कि केवल न्यास के द्वारा ही देवत्व की प्राप्ति और मन्त्रसिद्धि हो जाती है। हमारे भीतर-बाहर अंग-प्रत्यंग में देवताओं का निवास है, हमारा अन्तस्तल और बाह्रय शरीर दिव्य हो गया है - इस भावना से ही अदम्य उत्साह, अदभुत स्फूर्ति और नवीन चेतना का जागरण अनुभव होने लगता है। जब न्यास सिद्ध हो जाता है तब भगवान् से एकत्व स्वयंसिद्ध हो जाता है। न्यास का कवच पहन लेने पर कोई भी आध्यत्मिक अथवा आधिदैविक विघ्न पास नहीं आ सकते है और हमारी मनोवांछित इच्छाएं पूर्णता को प्राप्त करती है।                

Sunday 17 March 2013

The Holistic Philosophy

Nurture and nourish the entire being - the body, the mind and the spirit. If we ignore any of these areas, we are incomplete. We lack wholeness.

Begin with body and start with nutritious food. Find a form of exercise that apeals to you. Exercise strengthens your bones and keeps your body young.

For your mind you can go for some sort of spiritual practice.  Spirituality  is a wonderful way to quite the mind and allows your own knowings to come to the surface.

Nyas yog is an integrated spiritual technique. It is in itself a complete package of self development. In this technique we do chakra balancing, Mantra chanting, program our mind for positive thinking and learn to live with gratitude. Exercise and spiritual practice both are included in nyas yog.

We don't have all the answers for everyone. We just teach you the technique to explore your own powers. By using right method you connect to GOD and all your prayers are answered.

Saturday 16 March 2013

अगर अपनी आँखों में आंसू भर लोगे

अगर अपनी आँखों में आंसू भर लोगे तो दुनिया धुन्धली दिखाई देगी।

हम सब जब तब शिकायत करते रहते हैं। पर कुछ तो हमेशा ही बिना किसी बात के ही शिकायत करते रहते हैं। वो जहाँ भी हैं अपनी जिन्दगी में, वो जो कुछ भी कर रहे हों या जो कुछ भी इनके साथ हो रहा हो वो हमेशा शिकायत ही करते हैं। ट्रेफिक बहुत बुरा है , मौसम बहुत गरम या ठंडा है। लोग बहुत कठोर हैं। नौकर बहुत आलसी है।और भी जैसे कोई मुझे समझता नहीं, कोई मेरी तारीफ नहीं करता। कोई नहीं जानता मेरे साथ क्या हो रहा है। कोई मेरी परवाह नहीं करता। कोई मेरी मदद नहीं करता।

जो हमेशा शिकायत ही करते रहते हैं वो अपनी जिम्मेदारी या अपने काम की जिम्मेदारी नहीं लेते। उनसे पुछो कि उनके लक्ष्य पुरे क्यों नहीं हुए तो वो कई बहाने बनाएँगे। उनकी उर्जा और दिमाग इतना केन्द्रित होता है दूसरों की बुराइयाँ निकलने में कि वो अपने लक्ष्य की ओर ध्यान नहीं लगा सकते।कितना थकन देने वाला और निरर्थक होते हैं इनकी लगातार शिकायतें। वो अपनी ही   ताकत और कार्य क्षमता को कम कर लेते हैं।

चलो इन चीजों पर ध्यान देना  बंद कर दें जो गलत है बल्कि उन चीजों पर ध्यान दें जो सही है।हम उनकी तरफ न देखें जो हमारे पास नहीं है बल्कि वो देखें जो हमारे पास है या हमारे लिए है।चलो वक्त निकालें तारीफ करने  के लिए लोगों की जो वो हैं न की सिर्फ उनकी बुराइयों पर ध्यान दें।

जब हम किसी को लगातार कोसते हैं या आलोचना करते हैं हम अपनी जिन्दगी में बुराइयों को आकर्षित करते हैं। जब भी हम कुछ बुरा सोचते हैं हम धीरे धीरे उसे मानने लग जाते हैं, और वो हमें सच लगता है या हम उसे सच बना देते हैं।हमारी कल्पना की गई बुराइयां सच होने लगती हैं। पर इसका उल्टा भी सच होता है। जब हम अच्छी  चीजों को मानते हैं हम बेहतर बनते हैं। जब हम सफलता की कल्पना करते हैं और अच्छाइयों की बातें करते हैं सफलता सच में सामने आने लगती है।

जब तुम ईश्वर या किसी को धन्यवाद देते हो तब तुम्हारा दिल बड़ा हो जाता है। उससे तुम्हारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है। चिकित्सा अनुसन्धान बताता है की अच्छे भाव जैसे प्यार, कृतज्ञता हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते है और हमारे शरीर को बीमारियों  से बचाते हैं। हमारे मानसिक स्थिति का सीधा असर हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है।

अच्छे भावों जैसे कृतज्ञता और ख़ुशी  से होर्मोनेस निकलकर हमारे खून में मिलते  हैं जो हमारे शरीर के प्राकृतिक पेन किलर्स  हैं। हमारे खून की नालियों को फैलाते हैं और हमारे दिल की मांसपेशियों को राहत  देता है। तुम ताकतवर बनते हो।जबकि बुरे भावों जैसे गुस्सा, दुःख, कड़वाहट से बड़ी मात्रा में एड्रेनालाईन हमारे
खून में मिलता है, जिससे खून दिल में कम जाता है, सफ़ेद रक्त कोशिकाओं की रफ़्तार धीमी हो जाती है।
कृतज्ञता से अच्छे हारमोंस निकलते हैं जो बुरे हारमोंस निकलने नहीं देते  जिससे हम लम्बा और स्वस्थ्य जीवन जीते हैं।
जब तुम कृतज्ञता पर ध्यान देते हो तब तुम उन सभी चीजों पर ध्यान देते हो जो  तुम्हारी जिंदगी में अच्छी हैं, जिनसे ईश्वर उत्पन्न होते हैं। तुम अध्यात्मिक जनरेटर से जु ड़   जाते हो।अपनी परेशानियाँ देखोगे तो वो कई गुना बढ जाएंगी  और अपनी खुशियाँ गिनोगे तो वो भी ज्यादा बढेंगी और ज्यादा ख़ुशी देंगी। ज्यादा धन्यवाद देने वाले बनो न की शिकायत करने वाले, तब तुम्हारी परेशानियाँ सँभालने योग्य हो जाएंगी।
क्यों न अच्छी चीजों को अपनी जिंदगी में आमंत्रण दें।

Saturday 9 March 2013

Throat Chakra : Thyroid Gland


When you balance your throat chakra with nyas yog the thyroid gland gets activated. Functions of thyroid gland are as follows:

The thyroid is a butterfly-shaped gland that sits low on the front of the neck. Your thyroid lies below your Adam’s apple, along the front of the windpipe. The thyroid has two side lobes, connected by a bridge (isthmus) in the middle. When the thyroid is its normal size, you can’t feel it.
Brownish-red in color, the thyroid is rich with blood vessels. Nerves important for voice quality also pass through the thyroid.

The thyroid secretes several hormones, collectively called thyroid hormones. The main hormone is thyroxine, also called T4. Thyroid hormones act throughout the body, influencing metabolism, growth and development, and body temperature. During infancy and childhood, adequate thyroid hormone is crucial for brain development.