कुछ आध्यात्मिक हो जाय......
भादो महीने के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाअष्टमी के रूप में मनाया जाता है और इसी दिन से 16 दिन का महालक्ष्मी व्रत मनाया जाता है।
धन-संपदा और समृद्धि की शक्ति महालक्ष्मी की आराधना भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से प्रारंभ होकर 16 दिनों तक आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि तक होती है।
बहुत ध्यान देना है कि शक्ति पूजन क्यों?
शक्ति यानी एनर्जी।
आप स्थूल शक्ति पाने के लिए भोजन करते हैं। ज्यादा कमजोरी आने पर डॉक्टरी सलाह से विटामिन्स, एनर्जी ड्रिंक्स, ब्लड आदि लेते हैं।
पर सिर्फ स्थूल एनर्जी से सबकुछ सही नहीं चलता है। सूक्ष्म एनर्जी की भी जरूरत पड़ती है। यह सूक्ष्म एनर्जी पाने के लिए विचारों का मंथन करना होता है।
शरीर, ज्ञान, बुद्धि, विवेक का समन्वय करना पड़ता है।
निराला की कविता "राम की शक्तिपूजा" की कुछ पंक्तियाँ देखें ......
"साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम !"
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।
देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर
वामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।
ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,
मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।
हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,
दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,
मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर
श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर।
“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।
देखें यहां, जब राम ने शक्ति की पूजा प्रारम्भ की तो उनके अंदर से ही शक्ति सामने साकार हुई और जीत का आश्वासन देकर पुनः उसमें ही समाहित हो गई।
हरेक मनुष्य के अंदर ही तमाम शक्तियां निहित है। बस कुछ क्षण अपने अंदर प्रवेश कर उस शक्ति को महसूस करें, जागृत करें, उसका अनुभव करें और नवीन दृष्टिकोण से जीत के लिए आगे बढ़ें, यही हरेक पूजन दिवस का सन्देश होता है।
आज से सोलह दिन का समृद्धि के शक्ति जागरण के आंतरिक प्रकाश जागरण में जरूर शामिल हों। कुछ क्षण स्वयं के लिए स्वयं के साथ बिताएं।
राधा हो, लक्ष्मी हो, दुर्गा हो या काली हो सभी आपके अंदर के एनर्जी के नाम हैं, जो आपको व्यवस्थित करती है जीवन को सही दिशा देने में। आसुरी प्रवृति को समाप्त करने में।
आइए हम थोड़े आध्यत्मिक हो जाएं।