आमतौर पर कर्म की परिणति के रूप में हम फल की आशा रखते हैं। ये सहज मानव प्रवृति है और ठीक भी है। पर इस सोच के साथ हम याद नहीं रखते कि हर कर्म की प्रतिक्रिया कर्म के अनुरूप होती है। विज्ञान ने भी ये बात सिद्ध कर दी है। न्यूटन का तीसरा नियम बतलाता है कि प्रत्येक क्रिया के विपरीत उसी के अनुरूप प्रतिक्रिया होती है। स्वभाविक है जब हम कोई कर्म करते है तो उसका फल उस कर्म में लगाए गये उर्जा के अनुरूप मिलता है। यदि कर्म में हमने 100 प्रतिशत दिया है तो फल निश्चित ही 100 प्रतिशत मिलेगा।
पर हम करते क्या है?
पूरी निष्ठा से कर्म तो नहीं करते पर पूरी निष्ठा से फल की आशा में लगे रहते है और फल प्राप्ति में थोड़ी कमी रह गई तो तनाव में आ जाते है। नकारात्मक व्यहार करने लगते है। जरुरत कर्म को 100 प्रतिशत देने की है कर्म का स्वरूप स्वत: पूर्ण फल देनेवाला हो जायगा।
पर हम करते क्या है?
पूरी निष्ठा से कर्म तो नहीं करते पर पूरी निष्ठा से फल की आशा में लगे रहते है और फल प्राप्ति में थोड़ी कमी रह गई तो तनाव में आ जाते है। नकारात्मक व्यहार करने लगते है। जरुरत कर्म को 100 प्रतिशत देने की है कर्म का स्वरूप स्वत: पूर्ण फल देनेवाला हो जायगा।
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