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Monday, 19 August 2019

विश्वास कभी हारता नहीं

न्यास चर्चा चल रही थी। गुरु जी बता रहे थे श्रद्धा और विश्वास से ही इच्छित फल की प्राप्ति संभव है।
हम संशय में थे । उन्होंने एक कथा सुनाई।
जाड़े का दिन था और शाम होने को आई। आसमान में बादल छाए थे। एक नीम के पेड़ पर बहुत से कौए बैठे थे। वे सब बार-बार कांव-कांव कर रहे थे और एक-दूसरे से झगड़ भी रहे थे। इसी समय एक मैना आई और उसी पेड़ की एक डाल पर  बैठ गई। मैना को देखते हुए कई कौए उस पर टूट पड़े।

बेचारी मैना ने कहा- “बादल बहुत हैं इसीलिए आज अंधेरा हो गया है।  मैं अपना घोंसला भूल गई हूँ। इसीलिए आज रात मुझे यहां बैठने दो।“

कौओं ने कहा- “नहीं यह पेड़ हमारा है तू यहां से भाग जा।“

मैना बोली- “पेड़ तो सब ईश्वर के बनाए हुए हैं। इस सर्दी में यदि वर्षा  पड़ी और ओले पड़े तो ईश्वर ही हमें बचा सकते हैं। मैं बहुत छोटी हूँ, तुम्हारी बहन हूँ, तुम लोग मुझ पर दया करो और मुझे भी यहां बैठने दो।“

कौओं ने कहा- “हमें तेरी जैसी बहन नहीं चाहिए। तू बहुत ईश्वर का नाम लेती है तो ईश्वर के भरोसे यहां से चली क्यों नहीं जाती। तू नहीं जाएगी तो हम सब तुझे मारेंगे।“

कौओं को कांव-कांव करके अपनी ओर झपटते देखकर बेचारी मैना वहां से उड़ गई और थोड़ी दूर जाकर एक आम के पेड़ पर बैठ गई। रात को आंधी आई, बादल गरजे और  बड़े-बड़े ओले बरसने लगे। कौए कांव-कांव करके चिल्लाए। इधर से उधर थोड़ा-बहुत उड़े परन्तु ओलों की मार से सबके सब घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। बहुत से कौए मर गए।

मैना जिस आम पर बैठी थी उसकी एक डाली टूट कर गिर गई। डाल टूटने पर उसकी जड़ के पास पेड़ में एक खोंडर हो गया। छोटी मैना उसमें घुस गई और उसे एक भी ओला नहीं लगा। सवेरा हुआ और दो घड़ी चढऩे पर चमकीली धूप निकली। मैना खोंडर में से निकली पंख फैला कर चहक कर उसने भगवान को प्रणाम किया और उड़ी।

 पृथ्वी पर ओले से घायल पड़े हुए कौए ने मैना को उड़ते देख कर बड़े कष्ट से पूछा- “मैना बहन! तुम कहां रही तुम को ओलों की मार से किसने बचाया।“

मैना बोली- “मैं आम के पेड़ पर अकेली बैठी भगवान से प्रार्थना करती रही और भगवान ने मेरी मदद की।“
 ईश्वर वास्तव में आपके विश्वास की ऊर्जा है सभी आपत्ति-विपत्ति में  सहायता करती है।

Thursday, 15 August 2019


रक्षा-बंधन श्रावणी-पूर्णिमा और स्वतन्त्रता दिवस

पूर्णिमा की रात्रि को गुरुजी के चरण-स्पर्श से रोम-रोम पूर्ण चांद की तरह दमक उठता है। चांदनी रात की धवलता संपूर्ण शरीर से छिटकती महसूस होती है। श्वेत प्रकाश के एक दिव्य सुरक्षा घेरे के बीच स्वयं को पाती हूँ।
गुरुजी कहते हैं, व्यक्तित्व में पूर्णता का अहसास ही रक्षा के  भाव से भर जाना है। यही रक्षा-बंधन है और यही स्वतन्त्रता भी। पूर्णिमा का चांद जिस प्रकार पूर्णता में अपने प्रकाश से संपूर्ण ब्रह्मांड को आनन्दित कर देता है, उसे पूर्णिमा के दिन प्रकाश के फैलाव के लिए क्षेत्र-विशेष नहीं चुनना पड़ता है। सारा ब्रह्मांड उसका होता है, जब सारा ब्रह्मांड ही उसके प्रकाश से प्रकाशित है, तब उसे किस अंधेरे का डर! उसका अपना प्रकाश ही उसका रक्षा-सूत्र है। अपने प्रकाश के घेरे में वह सुरक्षित है।
पूर्णिमा के दिन रक्षा-बन्धन का यही संदेश है कि आप पूर्णिमा की चांद की तरह पूर्ण हो जाओ। आपकी पूर्णता का प्रकाश आपका रक्षा-सूत्र होगा।
चन्द्रमा का संबन्ध मन से भी है। मन की संकीर्णता, मन की गुलामी भी असुरक्षा के भाव से आपको भर देता है। आप अप्रत्यक्ष मानसिक गुलामी के शिकार होते जाते हैं। इस मानसिक गुलामी के जकड़न से स्वयं को निकलना भी पूर्णता है।
अपनी पूर्णता के रक्षा-सूत्र के घेरे में आप भी सुरक्षित रहोगे और जो आपके संपर्क में आएगा, वह भी सुरक्षित हो जाएगा। सुरक्षा करने के योग्य भी हो जाएगा।
रक्षा-बंधन का यही संदेश है कि हर बहन पूर्णिमा के चांद की तरह अपनी ऊर्जा का विस्तार करे और अपने प्रकाश के रक्षा-सूत्र से अपने भाई की कलाई सजाए।
 हर भाई भी  पूर्णिमा की चांद की सी संपूर्ण ऊर्जा  का स्वयं में विकास करे। वह चांद की तरह विशाल ह्रदय बने।जैसे चांद अपनी रोशनी से संपूर्ण ब्रह्मांड को बिना किसी भेद-भाव के प्रकाशित करता है। वैसे ही वह हर बहन की ओर रक्षा-प्रकाश का विस्तार करे।
विवेक के प्रकाश से यह संभव है। न्यास योग इस विवेक के प्रकाश को प्रकाशित करने की सरल प्रक्रिया है। हम इससे जुड़ें और रक्षा के धवल प्रकाश से स्वयं को आच्छादित करें।
गुरु कृपा ही केवलम