रक्षा-बंधन श्रावणी-पूर्णिमा और स्वतन्त्रता दिवस
पूर्णिमा की रात्रि को गुरुजी के चरण-स्पर्श से रोम-रोम पूर्ण चांद की तरह दमक उठता है। चांदनी रात की धवलता संपूर्ण शरीर से छिटकती महसूस होती है। श्वेत प्रकाश के एक दिव्य सुरक्षा घेरे के बीच स्वयं को पाती हूँ।
गुरुजी कहते हैं, व्यक्तित्व में पूर्णता का अहसास ही रक्षा के भाव से भर जाना है। यही रक्षा-बंधन है और यही स्वतन्त्रता भी। पूर्णिमा का चांद जिस प्रकार पूर्णता में अपने प्रकाश से संपूर्ण ब्रह्मांड को आनन्दित कर देता है, उसे पूर्णिमा के दिन प्रकाश के फैलाव के लिए क्षेत्र-विशेष नहीं चुनना पड़ता है। सारा ब्रह्मांड उसका होता है, जब सारा ब्रह्मांड ही उसके प्रकाश से प्रकाशित है, तब उसे किस अंधेरे का डर! उसका अपना प्रकाश ही उसका रक्षा-सूत्र है। अपने प्रकाश के घेरे में वह सुरक्षित है।
पूर्णिमा के दिन रक्षा-बन्धन का यही संदेश है कि आप पूर्णिमा की चांद की तरह पूर्ण हो जाओ। आपकी पूर्णता का प्रकाश आपका रक्षा-सूत्र होगा।
चन्द्रमा का संबन्ध मन से भी है। मन की संकीर्णता, मन की गुलामी भी असुरक्षा के भाव से आपको भर देता है। आप अप्रत्यक्ष मानसिक गुलामी के शिकार होते जाते हैं। इस मानसिक गुलामी के जकड़न से स्वयं को निकलना भी पूर्णता है।
अपनी पूर्णता के रक्षा-सूत्र के घेरे में आप भी सुरक्षित रहोगे और जो आपके संपर्क में आएगा, वह भी सुरक्षित हो जाएगा। सुरक्षा करने के योग्य भी हो जाएगा।
रक्षा-बंधन का यही संदेश है कि हर बहन पूर्णिमा के चांद की तरह अपनी ऊर्जा का विस्तार करे और अपने प्रकाश के रक्षा-सूत्र से अपने भाई की कलाई सजाए।
हर भाई भी पूर्णिमा की चांद की सी संपूर्ण ऊर्जा का स्वयं में विकास करे। वह चांद की तरह विशाल ह्रदय बने।जैसे चांद अपनी रोशनी से संपूर्ण ब्रह्मांड को बिना किसी भेद-भाव के प्रकाशित करता है। वैसे ही वह हर बहन की ओर रक्षा-प्रकाश का विस्तार करे।
विवेक के प्रकाश से यह संभव है। न्यास योग इस विवेक के प्रकाश को प्रकाशित करने की सरल प्रक्रिया है। हम इससे जुड़ें और रक्षा के धवल प्रकाश से स्वयं को आच्छादित करें।
गुरु कृपा ही केवलम
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