हमारे शरीर में मूल रूप से सात अंत श्रावित ग्रंथियां होती है। ये अंत श्रावित ग्रंथियां हमारे शरीर की आवश्यकता के अनुसार हार्मोन्स तैयार करती है। इन हार्मोन्सो के द्वारा ही हमारे शरीर की हर गतिविधि संचालित होती है।
ये सातो ग्रंथि हमारे सुक्ष्म शरीर में स्थित सात चक्रों से जुडी होती है वास्तव में स्थूल शरीर में स्थित ये सात अंत श्रावित ग्रंथियाँ सूक्ष्म शरीर में स्थित चक्रो के प्रतिरूप है। यदि इन चक्रों को संतुलित कर लिया जाए तो ये ग्रंथियां सुचारू रूप से काम करते हुए शरीर को स्वस्थ रखती है।
जब हम इन चक्रों के संतुलन का तरीका जान लेते है तब शरीर के हर गतिविधि पर अपना नियंत्रण पा लेते है और इसको स्वस्थ रखना हमारे नियंत्रण में हो जाता है।
सातों चक्र एवम उनसे जुडी ग्रंथियाँ : -
चक्र अन्तश्रावित ग्रंथियाँ
1. मूलाधार चक्र एड्रिनल ग्रंथि
2. स्वाधिष्ठांन चक्र गोनेड्स ग्रंथि
3. मनीपुर चक्र पैन्क्रियाज ग्रंथि
4. हृदय चक्र थाइमस ग्रंथि
5. विशुद्ध चक्र थाइराइड ग्रंथि
6. आज्ञा चक्र पिट्यूटरी ग्रंथि
7. सहस्त्रार चक्र पीनियल ग्रंथि
न्यासयोग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे चक्र संतुलन करने का तरीका सिखाया जाता है। प्रथमत: इसमें सभी चक्रो के संतुलन की विधि सिखाई जाती है। उसके बाद व्याधि विशेष को समाप्त करने संबंधी चक्र संतुलन की विधि बताई जाती है। सबसे अहम् बात न्यासयोग में न सिर्फ व्याधि विशेष का निदान मिलता है बल्कि जीवन से जुडी तमाम समस्याओं का समाधान भी मिलता है।
ये सातो ग्रंथि हमारे सुक्ष्म शरीर में स्थित सात चक्रों से जुडी होती है वास्तव में स्थूल शरीर में स्थित ये सात अंत श्रावित ग्रंथियाँ सूक्ष्म शरीर में स्थित चक्रो के प्रतिरूप है। यदि इन चक्रों को संतुलित कर लिया जाए तो ये ग्रंथियां सुचारू रूप से काम करते हुए शरीर को स्वस्थ रखती है।
जब हम इन चक्रों के संतुलन का तरीका जान लेते है तब शरीर के हर गतिविधि पर अपना नियंत्रण पा लेते है और इसको स्वस्थ रखना हमारे नियंत्रण में हो जाता है।
सातों चक्र एवम उनसे जुडी ग्रंथियाँ : -
चक्र अन्तश्रावित ग्रंथियाँ
1. मूलाधार चक्र एड्रिनल ग्रंथि
2. स्वाधिष्ठांन चक्र गोनेड्स ग्रंथि
3. मनीपुर चक्र पैन्क्रियाज ग्रंथि
4. हृदय चक्र थाइमस ग्रंथि
5. विशुद्ध चक्र थाइराइड ग्रंथि
6. आज्ञा चक्र पिट्यूटरी ग्रंथि
7. सहस्त्रार चक्र पीनियल ग्रंथि
न्यासयोग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे चक्र संतुलन करने का तरीका सिखाया जाता है। प्रथमत: इसमें सभी चक्रो के संतुलन की विधि सिखाई जाती है। उसके बाद व्याधि विशेष को समाप्त करने संबंधी चक्र संतुलन की विधि बताई जाती है। सबसे अहम् बात न्यासयोग में न सिर्फ व्याधि विशेष का निदान मिलता है बल्कि जीवन से जुडी तमाम समस्याओं का समाधान भी मिलता है।
No comments:
Post a Comment