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Sunday, 28 July 2013

न्यास क्रिया चक्रों

जब मानव ह्रदय में किसी वस्तु की इच्छा होती है तो वह उसके लिए प्रयास करता है. परन्तु हमेशा सभी इच्छाएँ पूर्ण नहीं होती है. जब मानव की इच्छा पूर्ण नहीं होती है तो उसका ह्रदय विचलित होता है. उसे क्रोध आता है, दुख होता है और तब उसके ह्रदय में आक्रोश का जन्म होता है इन सब नकारात्मक विचारों से उसका संतुलन बिगड़ जाता है. जीवन में हर तरह की समस्या आने लगती है सामाजिक, आर्थिक आदि ….
           ये सभी प्रक्रिया अनाहत चक्र में प्रारंभ होती है और मूलाधार में संग्रहित होती जाती है और लगातार बढती चली जाती है. इस परिसिथिति से बाहर निकलने के लिए चक्रों में संतुलन की स्थापना आवश्यक है. न्यास क्रिया चक्रों में इसी संतुलन को स्थापित कर मानव जीवन में आए विषमताओं का नाश करती है .


Sunday, 14 July 2013

Vacuuming 

When we worry about someone, blame ourselves for a person's misery, or massage someone who's in emotional pain,The angles gives  methods to take on their negative psychic energy .

To vacuum yourself with the help of angles, 

do these steps : -  

1. take three deep breathes. 

 2. mentally say - Archangel michael , I call upon you now to clear and vacuum                           the effect of fear. Then you see or feel  mentally a large being appears - this is Archangel michael. 

3. Notice that michael is holding a vacuum tube. just say - archangel michael please deposit the vacuum tube through the crown chakra and suction away toxic, fear-based, or entity energy. 

                   See and feel the vacuum tube completely cleaning the entire inside of the body (including organs, muscles and bones) from head to toe. keep vacuuming until the body feels quite.

4. When you feel relaxed say - thank you michael for this healing. Please now fill the body with your diamond - bright white light to heal and protect. 


 


Monday, 8 July 2013

जप पर स्वामी विवेकानंद के साथ प्रश्नोत्तर

प्र.-जप कैसे और कब करना चाहिए?

उ.- पूजा या उपासना का अर्थ है-प्रायाणाम ,ध्यान और किसी मंत्र विशेष का जप। ध्यान हमें भीतर लगाकर
      जप के लिए बैठना चहिये।

प्र.- कभी कभी जप में थकान होने लगती है. तब क्या करना चाहिए?

उ -दो कारणों से जप में थकान होती है। कभी कभी मस्तिष्क थक जाता है और कभी कभी आलस्य के  परिणामस्वरूप ऐसा होता है। यदि प्रथम कारण है, तो उस समय कुछ क्षण तक जप छोड़ देना चाहिए। क्योंकि हठपूर्वक जप में लगे रहने रहने से विभ्रम या विक्षिप्तावस्था आदि आ जाती है। परन्तु यदि द्वितीय कारण है तो मन को बलात जप में लगाना चाहिए।   

प्र.- यदि मन इधर-उधर भागता रहे, तब भी क्या देर तक जप करते रहना चाहिए?

उ.- हाँ, उसी प्रकार जैसे अगर किसी बदमाश घोड़े की पीठ पर कोई अपना आसन जमाये रखे तो वह उसे वश में कर लेता है।