जब मानव ह्रदय में किसी वस्तु की इच्छा होती है तो वह उसके लिए प्रयास करता है. परन्तु हमेशा सभी इच्छाएँ पूर्ण नहीं होती है. जब मानव की इच्छा पूर्ण नहीं होती है तो उसका ह्रदय विचलित होता है. उसे क्रोध आता है, दुख होता है और तब उसके ह्रदय में आक्रोश का जन्म होता है इन सब नकारात्मक विचारों से उसका संतुलन बिगड़ जाता है. जीवन में हर तरह की समस्या आने लगती है सामाजिक, आर्थिक आदि ….
ये सभी प्रक्रिया अनाहत चक्र में प्रारंभ होती है और मूलाधार में संग्रहित होती जाती है और लगातार बढती चली जाती है. इस परिसिथिति से बाहर निकलने के लिए चक्रों में संतुलन की स्थापना आवश्यक है. न्यास क्रिया चक्रों में इसी संतुलन को स्थापित कर मानव जीवन में आए विषमताओं का नाश करती है .
ये सभी प्रक्रिया अनाहत चक्र में प्रारंभ होती है और मूलाधार में संग्रहित होती जाती है और लगातार बढती चली जाती है. इस परिसिथिति से बाहर निकलने के लिए चक्रों में संतुलन की स्थापना आवश्यक है. न्यास क्रिया चक्रों में इसी संतुलन को स्थापित कर मानव जीवन में आए विषमताओं का नाश करती है .
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