प्र.-जप कैसे और कब करना चाहिए?
उ.- पूजा या उपासना का अर्थ है-प्रायाणाम ,ध्यान और किसी मंत्र विशेष का जप। ध्यान हमें भीतर लगाकर
जप के लिए बैठना चहिये।
प्र.- कभी कभी जप में थकान होने लगती है. तब क्या करना चाहिए?
उ -दो कारणों से जप में थकान होती है। कभी कभी मस्तिष्क थक जाता है और कभी कभी आलस्य के परिणामस्वरूप ऐसा होता है। यदि प्रथम कारण है, तो उस समय कुछ क्षण तक जप छोड़ देना चाहिए। क्योंकि हठपूर्वक जप में लगे रहने रहने से विभ्रम या विक्षिप्तावस्था आदि आ जाती है। परन्तु यदि द्वितीय कारण है तो मन को बलात जप में लगाना चाहिए।
प्र.- यदि मन इधर-उधर भागता रहे, तब भी क्या देर तक जप करते रहना चाहिए?
उ.- हाँ, उसी प्रकार जैसे अगर किसी बदमाश घोड़े की पीठ पर कोई अपना आसन जमाये रखे तो वह उसे वश में कर लेता है।
उ.- पूजा या उपासना का अर्थ है-प्रायाणाम ,ध्यान और किसी मंत्र विशेष का जप। ध्यान हमें भीतर लगाकर
जप के लिए बैठना चहिये।
प्र.- कभी कभी जप में थकान होने लगती है. तब क्या करना चाहिए?
उ -दो कारणों से जप में थकान होती है। कभी कभी मस्तिष्क थक जाता है और कभी कभी आलस्य के परिणामस्वरूप ऐसा होता है। यदि प्रथम कारण है, तो उस समय कुछ क्षण तक जप छोड़ देना चाहिए। क्योंकि हठपूर्वक जप में लगे रहने रहने से विभ्रम या विक्षिप्तावस्था आदि आ जाती है। परन्तु यदि द्वितीय कारण है तो मन को बलात जप में लगाना चाहिए।
प्र.- यदि मन इधर-उधर भागता रहे, तब भी क्या देर तक जप करते रहना चाहिए?
उ.- हाँ, उसी प्रकार जैसे अगर किसी बदमाश घोड़े की पीठ पर कोई अपना आसन जमाये रखे तो वह उसे वश में कर लेता है।
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