शुभ न्यास दिवस
30.11.2022
स्मिता सुप्रीति, रांची
न्यासयोग में जुड़ने से पता चला कि सकारात्मक और नकारात्मक क्या हैं?निः+अस् न्यास के बारे में जानी।
मैं अपने मिक्सी से अंगुली कटने ,गढ्ढे में गिरकर बाहर निकलने,या बच्चों की बिमारी में,अपने पति के हर तनाव की घड़ी में साथ रहने को ही सकारात्मक समझती थी।
मेरी गुरू ने मुझसे एक दो प्रश्न किये जिससे मुझे मेरे नकारात्मक होने का पता चला। फिर भी मैं यह समझ नहीं पा रही थी,नकारात्मकता निकालूंगी कैसे?असंभव लगा था।यह प्रश्न पर मैं कुछ ज्यादा ही मंथन करने लगी थीं।
जब मुझे आज के दिन के दस वाक्य मिलें और दिव्य प्रेम एवं दिव्य क्षमा मंत्र मिले।अपने को जज करने के लिए सकारात्मक और नकारात्मक मार्क्स जोड़ने और घटाने पड़े,उसी समय मैने ठान लिया इस जोड़ घटाव से अच्छा हैं कटु शब्द,आलोचना,और आक्रोश को बस यहीं छोड़ दो।उसके बाद खुद ही समझ आ गया निः+अस् का अर्थ, सकारात्मक रहेगा कैसे और नकारात्मकता को निकालेंगे कैसे।
हमें दुसरे की मानसिकता नहीं बदलना है ,स्वयं के मानसिकता को विकसित करना है,बदलना है।मानसिकता बदलाव के लिए बहुत कुछ खोना है।कटु शब्दों के बाण, चिड़चिड़ापन, क्रोध,किसी की हंसी उड़ाना,शिकायतें करने या सुनने,अपने तनाव ईर्ष्या, दूसरो की अवहेलना करने की आदत को खोना पड़ेगा।
न्यासयोग पाठ्यक्रम में
सबसे महत्त्वपूर्ण है, हमारी नकारात्मकता ही पूर्णतः समाप्त हो जाती है।
न्यासयोग ऊर्जा उपचार सामाजिक बदलाव में अहम् रुप से कारगर है।आज की व्यस्ताओं भरी तनाव पूर्ण जिंदगी में हरेक दिन खुद की ऊर्जाओं के साथ कम से कम आधा घंटा बिताए तो हमारे जीवन की नकारात्मकता हमें छोड़ कर चलीं जाएगी, औंर हम तन और मन दोनों से स्वस्थ हो जाएंगे।जब हम स्वयं स्वस्थ्य और सकारात्मक हो जाएंगे तो अपने आप आस पास के व्यक्ति और वातावरण भी स्वस्थ एवं सकारात्मक हो जाएंगे। यही से समाजिक बदलाव की शुरुआत होगी।
आज के लोगों में किसी कार्य के प्रति धैर्य, विवेक एवं सामंजस्यता की कमी है,एक दूसरे से आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण में ऊपर उठने की चाह से उनमें द्वेष,ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा इत्यादि मानसिक रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं।
खाने पीने और सोचने की अनुचित आदतों से व्यक्ति कई तरह की बीमारियों से घिर जाते हैं।
न्यासयोग में जुड़ने से ,गुरु के निर्देशानुसार बताए गए अभ्यासों को करने से हमारी ऊर्जा बिम्ब सुक्ष्म से सुक्ष्म विपदाओं से हमें तथा हमारे अपनो को संरक्षित करती हैं।पितृदोष जो हमारे समाज के लिए सबसे बड़े दोष के रूप में बताए जाते हैं और इससे बचने के लिए कई प्रकार के कर्मकांड बताए जाते हैं।
न्यास योग में यह बहुत सहज तरीके से बताया जाता है और इसे आनन्दोत्सव के रूप में मनाकर पूर्वजों के प्रेम से जोड़ देता है। पितृदोष से मुक्ति एक पीढ़ी ही नहीं वरन् सात पीढ़ियों के लिए बताया जाता हैं।
"दिव्य प्रेम प्रगट हो,रोग शोक नष्ट हो" मंत्र के जप से सभी तरह की शारीरीक एवं मानसिक रोगों से निजात पा सकते हैं।
मैं अपनी गुरु डा. रीता सिंह जी की सदा आभारी रहुँगी,जिन्होंने मुझे
न्यास योग उपचार एवं तनाव प्रबंधन पद्धति के लिए अपनी शिष्य के रूप में स्वीकार किया।
यह पद्धति समग्र रूप में मन को बदल देती है। जीवन के आदर्श गुणों से परिचय करवाती है। ईर्ष्या, क्रोध, आक्रोश सबसे दूर रहने का तरीका सिखाती है।
प्रेम, क्षमा, सफलता के साथ जीने की कला सिखाती है। इससे अच्छा और क्या चाहिए?
अपने जीवन में आएं बदलाव के आधार पर कहती हूँ कि इसका अभ्यास समाज में बढ़ जाये यो बदलाव आना ही है।
इस सुंदर आभ्यास को लाने के लिए न्यास गुरु डॉ बी पी साही को बहुत बहुत धन्यवाद। 🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
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