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Friday 29 March 2013

आधुनिकता एवं आध्यात्मिकता के संगम हमारे गुरु - डा. बी. पी.साही के जन्मदिन पर सादर चरण स्पर्श

न्यास योग के प्रवर्तक  हमारे गुरु - डा . बी . पी . साही (गुप्तावधुत श्री योगानन्दनाथ  गिरि ) किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।  पिछले तीस साल से न्यास योग के माध्यम से लोक कल्याण  के क्षेत्र में अपनी मौन सेवा दे रहे हैं।
                          
                              सरल, सहज, सह्र्दय, कोमल वाणी,  चेहरे पर गौरवमयी मुस्कान और हर पल अदम्य उत्साह से ओत-प्रोत हमारे गुरूजी हमारी शक्ति पुंज हैं।  
                            
                                 पहली बार  जब मैं गुरूजी से मिली तो  उनका मुझसे प्रश्न था - "आप यहाँ क्यों आई हैं। " न्यास योग के एलिमेंट्री क्लास में उनकी ही एक शिष्या के द्वारा वहाँ ले जाई  गई थी मैं। नहीं जानती थी न्यास योग के बारे में और ना ही गुरूजी के बारे में। अचानक के सवाल का कुछ जवाव नहीं सुझा कह गई "आपको ही जानने आई हूँ। " बड़े जोर से हँसे गुरूजी - "मुझे जानने !" 

                            तब से उन्हें जानने की कोशिश में लगी हूँ। उनके जितने करीब जाती हूँ, उतने ही गहरे पाती हूँ। उनकी गहराई का ज्ञान तो हमें नहीं होता, पर पूर्ण विश्वास के साथ उस गहराई में उतरती चली जाती हूँ। जानती हूँ किनारे पर गुरु का हाथ मजबूती से हमें थामे है। 

                           आज आप  हमारे सिर्फ न्यास गुरु नहीं हैं, आध्यात्मिक गुरु भी हैं। परम्परागत गुरु की पहचान से अलग आधुनिकता के लिवास में दिखते हमारे गुरूजी ने साधना के चरम  ऊँचाई  को छू रखा है। आठ  वर्ष की उम्र से ही आपने अपने  गुरु परमहंसावधुत श्री रामानंदनाथ गिरि  संस्थापक, जयंती माता मंदिर, वनहुगली, कलकत्ता  के सानिध्य में जप, ध्यान और कठोर साधना की हर सीढ़ी को लाँघकर माँ आदया की कृपा प्राप्त की है। हमें एहसास है कि माँ आद्या आपकी वाणी में हैं, पर आप निर्लिप्त, सहज और सरल हैं। आपने सिखाया है - "बस अभिमान त्याग दो, सबकुछ मिल जाएगा।  " --

                              सबसे कठिन मानी जाने वाली तंत्र- साधना को गुरूजी ने सरल और सहज बना दिया। उनकी शिक्षा है - प्रवृति पर नियंत्रण, मनोवृति में बदलाव और चित्त शक्ति के विलास में विश्वास ही तंत्र-साधना है।  उनके अनुसार - "तंत्र-साधना कुछ पाने का माध्यम नहीं है, यह तो लोक-कल्याण के लिए स्वयं को मजबूत बनाने  का साधन है। "

      इसी निमित्त उन्होंने न्यास साधना को न्यासयोग में तब्दील किया। इस योग के माध्यम से शरीर, मन और  आत्मा में संतुलन स्थापित करना सिखाया जाता है यही तंत्र, मंत्र और हर साधना का अंतिम लक्ष्य है। न्यास योग के माध्यम से गुरु जन-जन में साधना का सही स्वरूप निरुपित कर देना चाहते है ताकि  समाज का हर व्यक्ति स्वस्थ हो, प्रसन्न हो।  

 By - Dr. Reeta Singh, nyasyog master
 Website - www.nyasyog.com
 Facebook -  www.facebook.com/nyasyog
                                                           
                                          
                         

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