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Monday 22 April 2013

प्रेम क्या है ?

एक शिष्य  ने रामकृष्ण परमहंस से पूछा - प्रेम क्या  है ?
रामकृष्ण परमहंस ने कहा - प्रेम कई प्रकार के  होते है। जैसे -
साधारण
समंजस
और समर्थ
साधारण - इस प्रेम में प्रेमी सिर्फ अपना ही सुख देखता है। वह  इस  बात की चिंता नहीं करता कि दूसरे व्यक्ति को भी उससे सुख है कि नहीं।
समंजस - इस प्रेम में  दोनों एक दूसरे के सुख के इक्छुक होते हैं। 
समर्थ -  यह सबसे उच्च दर्जे का प्रेम है। इस प्रेम में प्रेमी  कहता है - तुम सुखी रहो, मुझे चाहे कुछ भी हो। राधा में ये प्रेम विद्यमान था। श्रीकृष्ण के सुख में ही उन्हें सुख था। हनुमान में भी  ये प्रेम विद्यमान था। श्रीराम  के सुख में ही उन्हें सुख था।
                                     यह प्रेम तभी पैदा हो सकता है जब व्यक्ति अपने अहम् को मिटाकर स्वयं को अपने प्रेमी में समाहित कर दे। जैसे राधा या हनुमान ने किया। 
     

2 comments:

Unknown said...

Prem bhi kya adbhut visaya hai.

Usha Sinha said...

Eshwar ke prati samarpan hi to sachcha prem hai.