सबसे बड़ी पूजा किसे कहते हैं?
इस जिज्ञासा के उत्तर में भगवान कहते हैं -
सारी क्रिया परमात्मा को अर्पित कर अक्रिया भाव में अवस्थित रहना सबसे बड़ी पूजा है।
भगवान् शंकर कहते हैं - मानव शरीर दिव्य शक्तियों और शक्ति मंत्रो का अपना अधिष्ठान है। इसलिए इसे देवालय कहते हैं। इसमें प्रधान रूप से जिस देवता का निवास है,वही जीव कहलाता है। शास्त्र में इसे सदाशिव कहते हैं। इसके ऊपर अज्ञान का आवरण चढ़ा रहता है। अज्ञान के इस आवरण को हटाना ही पूजा है।
कुलार्णवतंत्र
इस जिज्ञासा के उत्तर में भगवान कहते हैं -
सारी क्रिया परमात्मा को अर्पित कर अक्रिया भाव में अवस्थित रहना सबसे बड़ी पूजा है।
भगवान् शंकर कहते हैं - मानव शरीर दिव्य शक्तियों और शक्ति मंत्रो का अपना अधिष्ठान है। इसलिए इसे देवालय कहते हैं। इसमें प्रधान रूप से जिस देवता का निवास है,वही जीव कहलाता है। शास्त्र में इसे सदाशिव कहते हैं। इसके ऊपर अज्ञान का आवरण चढ़ा रहता है। अज्ञान के इस आवरण को हटाना ही पूजा है।
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2 comments:
अक्रिया भाव में अवस्थित रहना isse apka kya matlab hai?
अक्रिया भाव में अवस्थित रहने का अर्थ है - तटस्थ भाव से रहना। सारी क्रिया परमात्मा को अर्पित कर फल की चिंता किए बिना तटस्थ भाव से जीवन ही अक्रिया भाव में अवस्थित रहना है।
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