रामायण की एक घटना है - नदी में सेतु बनाने बाँधने की......................…………………………………
................................................................................................................................. राम ने सोचा वाह मेरा नाम लिखा पत्थर जब नहीं डूब रहा है तो मेरे स्वयं के द्वारा पत्थर फेंकने से तो वह निश्चित ही नहीं डूबेगा। ऐसा सोचकर वे पत्थर पानी में फेंकने लगे , पर ये क्या? राम के द्वारा फेंके पत्थर डूब रहे थे?
प्रश्न - आखिर ऐसा क्यों हो रहा था?……………………. क्रमश:
श्रीमद भगवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि
" यदि ह्ग्हं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रित:।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश:। । "
अर्थात
यदि कदाचित मै सावधान होकर कर्मो में ना बरतूं तो बड़ी हानि हो जाए क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।
तात्पर्य यह कि मार्ग दिखलाने वाले को हमेशा सावधान होना चाहिए। रामायण के उपरोक्त घटना में राम मार्गदर्शक थे। किसी का अनुसरण करने से पूर्व उन्हें सावधानी से स्थिति को समझना चाहिए था।
वास्तव में हनुमान ने अपने आत्मा में बस रहे राम रुपि ईश्वरीय शक्ति से पत्थर को शक्तिशाली कर पानी में फेंका था, इसलिए वह नहीं डूबा, जबकि राम ने अहम् भाव से फेंका उन्होंने अपने नाम मात्र को सर्वश्रेष्ठ समझ लिया उसमें निहित हनुमान के विश्वास की शक्ति को नजरअंदाज कर दिया फलत: उनके द्वारा फेंका पत्थर डूब गया।
प्रश्न यह कि हम इस घटना से क्या सीखें ………………………………. क्रमश:
................................................................................................................................. राम ने सोचा वाह मेरा नाम लिखा पत्थर जब नहीं डूब रहा है तो मेरे स्वयं के द्वारा पत्थर फेंकने से तो वह निश्चित ही नहीं डूबेगा। ऐसा सोचकर वे पत्थर पानी में फेंकने लगे , पर ये क्या? राम के द्वारा फेंके पत्थर डूब रहे थे?
प्रश्न - आखिर ऐसा क्यों हो रहा था?……………………. क्रमश:
श्रीमद भगवतगीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि
" यदि ह्ग्हं न वर्तेयं जातु कर्मण्यतन्द्रित:।
मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्या: पार्थ सर्वश:। । "
अर्थात
यदि कदाचित मै सावधान होकर कर्मो में ना बरतूं तो बड़ी हानि हो जाए क्योंकि मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं।
तात्पर्य यह कि मार्ग दिखलाने वाले को हमेशा सावधान होना चाहिए। रामायण के उपरोक्त घटना में राम मार्गदर्शक थे। किसी का अनुसरण करने से पूर्व उन्हें सावधानी से स्थिति को समझना चाहिए था।
वास्तव में हनुमान ने अपने आत्मा में बस रहे राम रुपि ईश्वरीय शक्ति से पत्थर को शक्तिशाली कर पानी में फेंका था, इसलिए वह नहीं डूबा, जबकि राम ने अहम् भाव से फेंका उन्होंने अपने नाम मात्र को सर्वश्रेष्ठ समझ लिया उसमें निहित हनुमान के विश्वास की शक्ति को नजरअंदाज कर दिया फलत: उनके द्वारा फेंका पत्थर डूब गया।
प्रश्न यह कि हम इस घटना से क्या सीखें ………………………………. क्रमश:
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