*शुभ न्यास दिवस*
30-05-2020
*आज का सन्देश - गुरुमुख से*
*समस्याएं 48 घण्टे पहले कारण शरीर में प्रवेश करती हैं*
गुरु स्थान पर बहुत सुंदर विमर्श चल रहा था। आने वाली परिस्थितियों, समस्याओं और समाधान पर चर्चा चल रही थी।
प्रश्न था कि *कैसे हम समस्याओं के आगमन का आकलन करें और समस्या गंभीर रूप ले उससे पहले ही स्वयं को सुरक्षित कर लें।*
गुरुजी ने बताया, हमारे शरीर की तीन अवस्था है।
स्थूल,
सूक्ष्म और
कारण
कारण शरीर जिसे Causal Body कहते हैं। यह प्रकाश शरीर है। आभामंडल या औरा का शरीर भी इसे कह सकते हैं। इसी शरीर में किसी भी समस्या का प्रथम आगमन होता है। चाहे वह शारीरिक समस्या हो, मानसिक हो, आर्थिक हो, व्यापारिक हो, शैक्षणिक हो या पारिवारिक/सामाजिक हो।
*इसे स्थूल रूप में आने में कम से कम 48 घण्टा लगता है।*
यदि हम औरा/आभामंडल को पहचानना सीख लें। कारण शरीर से संपर्क साधना सीख लें तो समस्या विस्तार रूप ले, उससे पहले ही हम उसपर काम कर उसके प्रभाव को रोक सकते हैं।
पर उस शरीर में प्रवेश के लिए सांसारिक इच्छाओं से थोड़ा ऊपर उठना होता है। स्थूल शरीर की इच्छाओं से थोड़ा उपर उठना होता है। भौतिक संसार की गिनती से अलग गुणा-भाग में प्रवेश करना होता है।
पति ने साड़ी नहीं दिया, पत्नी ने चाय नहीं दी, बच्चे ने जबाब दे दिया, पड़ोसी ने धुंआ कर दिया, उसकी आदत बहुत खराब है, भाभी मां को कष्ट देती है, भैया कुछ नहीं बोलते, पति ने मेरी बातों का जबाब नहीं दिया आदि से उपर उठना होता है।
कारण शरीर पारदर्शी है। शरीर के आर-पार हो जाना है। *यह मन के भाव से निकले प्रकाश से निर्मित होता है। मन से निकला प्रकाश जितना शुद्ध, पारदर्शी, द्वन्दरहित, आलोचनारहित, क्रोधरहित, मानवीय, सुंदर, आनन्द से भरा होगा उतना ही प्रकाशमय , धवल आपका कारण शरीर विकसित होगा।*
आपका मन जब तमाम छल-प्रपंच से बाहर आएगा, सांसारिक चीजों के लिए रोना बन्द कर देगा, तब आपका अपने कारण शरीर से संपर्क बन जाएगा। आपकी दृष्टि खुल जाएगी। तीसरे नेत्र से संपर्क हो जाएगा। तब आप दूसरे के कारण शरीर को भी देख पाने की क्षमता पा लेंगे।
आप पूर्ण आध्यात्मिक चिकित्सक बन जाएंगे।
यह तो बहुत कठिन है गुरुजी। संसार की बातों से इतनी दूरी संभव है क्या?
अब आपलोग देख लीजिए, आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश की तो यही शर्तें हैं। यही सजगता है। यही व्यवस्था है। इससे इतर कुछ भी नहीं है। कोई शार्टकट नहीं है।
आप अपनी तैयारी देखकर आगे बढिए या संसार के कीचड़ में लोटपोट होते रहिए। चयन आपका है।
ओह!
अब क्या करें? संसार की इच्छाएं तो खिंचती हैं हमें। आकर्षित करती हैं हमें। कल भी लिपस्टिक लगाने का मन कर गया था, क्या इसे भी छोड़ दूं।
मन भाग रहा था कि गुरुजी ने टोका, आपलोग कल अपने मन को पढ़कर आइएगा, तब आगे की कक्षा में हमलोग बढ़ेंगे।
जी गुरुजी, कहकर हमलोगों ने विदा लिया।
*दिव्य प्रेम प्रगट हो, रोग-शोक नष्ट हो*
*डॉ रीता सिंह*
*न्यासयोग ग्रैंड मास्टर*
30-05-2020
*आज का सन्देश - गुरुमुख से*
*समस्याएं 48 घण्टे पहले कारण शरीर में प्रवेश करती हैं*
गुरु स्थान पर बहुत सुंदर विमर्श चल रहा था। आने वाली परिस्थितियों, समस्याओं और समाधान पर चर्चा चल रही थी।
प्रश्न था कि *कैसे हम समस्याओं के आगमन का आकलन करें और समस्या गंभीर रूप ले उससे पहले ही स्वयं को सुरक्षित कर लें।*
गुरुजी ने बताया, हमारे शरीर की तीन अवस्था है।
स्थूल,
सूक्ष्म और
कारण
कारण शरीर जिसे Causal Body कहते हैं। यह प्रकाश शरीर है। आभामंडल या औरा का शरीर भी इसे कह सकते हैं। इसी शरीर में किसी भी समस्या का प्रथम आगमन होता है। चाहे वह शारीरिक समस्या हो, मानसिक हो, आर्थिक हो, व्यापारिक हो, शैक्षणिक हो या पारिवारिक/सामाजिक हो।
*इसे स्थूल रूप में आने में कम से कम 48 घण्टा लगता है।*
यदि हम औरा/आभामंडल को पहचानना सीख लें। कारण शरीर से संपर्क साधना सीख लें तो समस्या विस्तार रूप ले, उससे पहले ही हम उसपर काम कर उसके प्रभाव को रोक सकते हैं।
पर उस शरीर में प्रवेश के लिए सांसारिक इच्छाओं से थोड़ा ऊपर उठना होता है। स्थूल शरीर की इच्छाओं से थोड़ा उपर उठना होता है। भौतिक संसार की गिनती से अलग गुणा-भाग में प्रवेश करना होता है।
पति ने साड़ी नहीं दिया, पत्नी ने चाय नहीं दी, बच्चे ने जबाब दे दिया, पड़ोसी ने धुंआ कर दिया, उसकी आदत बहुत खराब है, भाभी मां को कष्ट देती है, भैया कुछ नहीं बोलते, पति ने मेरी बातों का जबाब नहीं दिया आदि से उपर उठना होता है।
कारण शरीर पारदर्शी है। शरीर के आर-पार हो जाना है। *यह मन के भाव से निकले प्रकाश से निर्मित होता है। मन से निकला प्रकाश जितना शुद्ध, पारदर्शी, द्वन्दरहित, आलोचनारहित, क्रोधरहित, मानवीय, सुंदर, आनन्द से भरा होगा उतना ही प्रकाशमय , धवल आपका कारण शरीर विकसित होगा।*
आपका मन जब तमाम छल-प्रपंच से बाहर आएगा, सांसारिक चीजों के लिए रोना बन्द कर देगा, तब आपका अपने कारण शरीर से संपर्क बन जाएगा। आपकी दृष्टि खुल जाएगी। तीसरे नेत्र से संपर्क हो जाएगा। तब आप दूसरे के कारण शरीर को भी देख पाने की क्षमता पा लेंगे।
आप पूर्ण आध्यात्मिक चिकित्सक बन जाएंगे।
यह तो बहुत कठिन है गुरुजी। संसार की बातों से इतनी दूरी संभव है क्या?
अब आपलोग देख लीजिए, आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश की तो यही शर्तें हैं। यही सजगता है। यही व्यवस्था है। इससे इतर कुछ भी नहीं है। कोई शार्टकट नहीं है।
आप अपनी तैयारी देखकर आगे बढिए या संसार के कीचड़ में लोटपोट होते रहिए। चयन आपका है।
ओह!
अब क्या करें? संसार की इच्छाएं तो खिंचती हैं हमें। आकर्षित करती हैं हमें। कल भी लिपस्टिक लगाने का मन कर गया था, क्या इसे भी छोड़ दूं।
मन भाग रहा था कि गुरुजी ने टोका, आपलोग कल अपने मन को पढ़कर आइएगा, तब आगे की कक्षा में हमलोग बढ़ेंगे।
जी गुरुजी, कहकर हमलोगों ने विदा लिया।
*दिव्य प्रेम प्रगट हो, रोग-शोक नष्ट हो*
*डॉ रीता सिंह*
*न्यासयोग ग्रैंड मास्टर*