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Friday, 29 May 2020

आज का सन्देश - गुरुमुख से

*शुभ न्यास दिवस*
30-05-2020
*आज का सन्देश - गुरुमुख से*

*समस्याएं 48 घण्टे पहले कारण शरीर में प्रवेश करती हैं*

गुरु स्थान पर बहुत सुंदर विमर्श चल रहा था। आने वाली परिस्थितियों, समस्याओं और समाधान पर चर्चा चल रही थी।
प्रश्न था कि *कैसे हम समस्याओं के आगमन का आकलन करें और समस्या गंभीर रूप ले उससे पहले ही स्वयं को सुरक्षित कर लें।*
गुरुजी ने बताया, हमारे शरीर की तीन अवस्था है।
स्थूल,
सूक्ष्म और
कारण
कारण शरीर जिसे Causal Body कहते हैं। यह प्रकाश शरीर है। आभामंडल या औरा का शरीर भी इसे कह सकते हैं। इसी शरीर में किसी भी समस्या का प्रथम आगमन होता है। चाहे वह शारीरिक समस्या हो, मानसिक हो, आर्थिक हो, व्यापारिक हो, शैक्षणिक हो या पारिवारिक/सामाजिक हो।
*इसे स्थूल रूप में आने में कम से कम 48 घण्टा लगता है।*
यदि हम औरा/आभामंडल को पहचानना सीख लें। कारण शरीर से संपर्क साधना सीख लें तो समस्या विस्तार रूप ले, उससे पहले ही हम उसपर काम कर उसके प्रभाव को रोक सकते हैं।
पर उस शरीर में प्रवेश के लिए सांसारिक इच्छाओं से थोड़ा ऊपर उठना होता है। स्थूल शरीर की इच्छाओं से थोड़ा उपर उठना होता है। भौतिक संसार की गिनती से अलग गुणा-भाग में प्रवेश करना होता है।
पति ने साड़ी नहीं दिया, पत्नी ने चाय नहीं दी, बच्चे ने जबाब दे दिया, पड़ोसी ने धुंआ कर दिया, उसकी आदत बहुत खराब है, भाभी मां को कष्ट देती है, भैया कुछ नहीं बोलते, पति ने मेरी बातों का जबाब नहीं दिया आदि से उपर उठना होता है।
कारण शरीर पारदर्शी है। शरीर के आर-पार हो जाना है। *यह मन के भाव से निकले प्रकाश से निर्मित होता है। मन से निकला प्रकाश जितना शुद्ध, पारदर्शी, द्वन्दरहित, आलोचनारहित, क्रोधरहित, मानवीय, सुंदर, आनन्द से भरा होगा उतना ही प्रकाशमय , धवल आपका कारण शरीर विकसित होगा।*
आपका मन जब तमाम छल-प्रपंच से बाहर आएगा, सांसारिक चीजों के लिए रोना बन्द कर देगा, तब आपका अपने कारण शरीर से संपर्क बन जाएगा। आपकी दृष्टि खुल जाएगी। तीसरे नेत्र से संपर्क हो जाएगा। तब आप दूसरे के कारण शरीर को भी देख पाने की क्षमता पा लेंगे।
आप पूर्ण आध्यात्मिक चिकित्सक बन जाएंगे।
यह तो बहुत कठिन है गुरुजी। संसार की बातों से इतनी दूरी संभव है क्या?
अब आपलोग देख लीजिए, आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश की तो यही शर्तें हैं। यही सजगता है। यही व्यवस्था है। इससे इतर कुछ भी नहीं है। कोई शार्टकट नहीं है।
आप अपनी तैयारी देखकर आगे बढिए या संसार के कीचड़ में लोटपोट होते रहिए। चयन आपका है।
ओह!
अब क्या करें? संसार की इच्छाएं तो खिंचती हैं हमें। आकर्षित करती हैं हमें। कल भी लिपस्टिक लगाने का मन कर गया था, क्या इसे भी छोड़ दूं।
मन भाग रहा था कि गुरुजी ने टोका, आपलोग कल अपने मन को पढ़कर आइएगा, तब आगे की कक्षा में हमलोग बढ़ेंगे।
जी गुरुजी, कहकर हमलोगों ने विदा लिया।

*दिव्य प्रेम प्रगट हो, रोग-शोक नष्ट हो*
*डॉ रीता सिंह*
*न्यासयोग ग्रैंड मास्टर*

Friday, 22 May 2020

Science of Spiritual Symbols

*आज का न्यास सन्देश*
22-05-2020
गुरुमुख से

गुरुजी , मुझे यह यंत्र का विज्ञान समझ नहीं आता है। जब अपने औरा की ऊर्जा से हम एनर्जी बाउल बनाकर सुरक्षा घेरा बना ही लेते हैं। उसी ऊर्जा से चक्रों का सन्तुलन, दूसरे को हिलींग देना, सब काम आसानी से हो जाता है, तब यह विभिन्न तरह के यंत्रों की क्या जरूरत है?
गुरुजी हमेशा की तरह मुस्कुराए। उनकी स्मित मुस्कान से  अपना ही प्रश्न निरर्थक लगने लगता है। उनके मुस्कान से विषय-वस्तु की सार्थकता सामने आ जाती है।
गुरुजी मधुर वाणी में बोले, *ठीक है फिर मैं न्यासयोग से सभी यंत्रों को हटा देता हूँ। क्यों कष्ट हो आपलोगों। कीजिए ऊर्जा का अभ्यास।*
हम तो समझ भी नहीं पाते कि कब गुरुजी मुस्काते हुए हमपर कोड़े बरसा देंगे। वह भी ऐसा कोड़ा, जो दिखे भी नहीं।
अभी भी अप्रत्यक्ष कोड़े की मार से हम तिलमिला उठे, पर कह कुछ नहीं सकते हैं। अंदर ही पीड़ा को पी जाना है। सवाल ही अटपटा करेंगे, तो जबाब भी अटपटा मिलेगा।
हम मौन रह गए।
गुरुजी ने कहना प्रारम्भ किया।
यंत्र, शब्द-संकल्प का शरीर होता है। आप अपने अचेतन मन में जिस अवधारणा को स्थापित करना चाहते हैं, यंत्र के माध्यम से सहजता से स्थापित कर सकते हैं।
यंत्र मानव के अचेतन मन से संपर्क बनाता है। फिर उसका शोधन करता है। नई ऊर्जा की स्थापना करता है।
कोई भी आध्यात्मिक यंत्र एक व्यक्ति के जीवन में सौभाग्य, धन और समृद्धि लाता है। यंत्र का नियमित अभ्यास व्यक्ति के दिमाग को शांत करता है और मानसिक स्थिरता लाता है। यदि  यंत्र के प्रत्येक तत्व पर ध्यान दिया जाए तो यह हमें शरीर के स्थूल, सूक्ष्म और कारण स्वरूप से संपर्क कराता है।
कारण शरीर यानी ऊर्जा शरीर से संपर्क बनते ही हम आध्यत्मिक चिकित्सा की पहली सीढ़ी पार कर लेते हैं।
प्रत्येक यंत्र का यह सामान्य कार्य है।
इसके अलावा सभी यंत्रों के अपने विशिष्ट कार्य भी होते हैं। कार्य की उच्चतम सफलता के लिए यंत्रों का प्रयोग आवश्यक है।
गुरुवाणी से हमारा चित्त स्थिर हुआ। महसूस हुआ कि यंत्र को समझने के लिए किया गया हमारा प्रश्न सार्थक था।
गुरु कृपा ही केवलम।

*दिव्य प्रेम प्रगट हो, रोग-शोक नष्ट हो।*
*डॉ रीता सिंह*
*न्यासयोग ग्रैंड मास्टर*

Tuesday, 12 May 2020

Nyasyog Pitru Dosh

*सादर आमंत्रण*

कोरोना लॉक डाउन में हम बहुत कुछ सीख रहे हैं, समझ रहे हैं। 

जीवन में सैकड़ों समस्याओं को हम देखते हैं। कई बार हमें इसका कारण पितृदोष बताया जाता है। 
यह पितृ दोष वास्तव में है क्या और है तो इसका सहज समाधान क्या है?

इसी विषय पर विमर्श और न्यास ध्यान पद्धति से जुड़ने के लिए

*सेंटर फॉर न्यासयोग एंड अल्टरनेटिव थेरेपी*
आपको आमंत्रित कर रहा है

 *निःशुल्क ऑनलाइन पितृ दोष निवारण न्यास ध्यान* सेशन के लिए। 

 *प्रशिक्षक - डॉ. रीता सिंह, न्यासयोग ग्रैंड मास्टर*

*दिनांक 14 May, 2020*
सुबह 7 AM to 8 AM

*दिनांक  15 May, 2020*
सुबह 7 AM to 8AM

 इस सेशन में भाग लेने के लिए अपना डिटेल्स 7004906203 पर व्हाट्सएप करें। 
नाम
उम्र
पता
ईमेल
मोबाइल - व्हाट्सएप/ रेगुलर

*ज़ूम मीटिंग के द्वारा यह सेशन सम्पन्न होगा। शीघ्र पंजीकृत हों।*  


Sunday, 10 May 2020

श्रीमद फाऊंडेशन साहित्यिक गतिविधि

श्रीमद फाऊंडेशन साहित्यिक गतिविधि 

बच्चे बनकर बच्चों को सृजनात्मक बनाया जा सकता है - प्रतुल वशिष्ठ 

बच्चों के साथ बच्चे बनकर ही हम बच्चों को सृजनात्मक साहित्यिक गतिविधि से जोड़े रख सकते है। यह बात आज विशिष्ठ अतिथि के रूप में सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार श्री प्रतुल वशिष्ठ जी ने यह बात कही। वे
श्रीमद फाऊंडेशन साहित्यिक - सांस्कृतिक साप्ताहिक गतिविधि के अंतर्गत जूम ऑनलाइन बाल काव्य गोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने आगे कहा श्रीमद फाऊंडेशन के कार्यक्रम और प्रयास दोनों सराहनीय हैं। बच्चों में कविता और बालगीत के प्रति लगाव दिख रहा था । केवल इस नये माध्यम ने चौंकाया हुआ था इसलिए कुछ हड़बड़ी थी। वैसे सभी में इस नये माध्यम को लेकर आकर्षण विशेष दिखायी दे रहा था जो कि मैं खुद में भी महसूस कर रहा था। बच्चों की प्रस्तुति के लिए उनके अभिभावकों और आयोजकों को श्रेय जाता है। उन्होंने बच्चों के लिए समर्पित भाव से इसमें अपनी ऊर्जा लगायी, व्यवस्था की। श्री प्रतुल वशिष्ठ जी राजीव गांधी फाउंडेशन के अंतर्गत चलने वाले वन्दररूम में बच्चों की गतिविधियां कराते हैं। प्रतुल सर ने नागेश पांडेय जी के गीत ' लिल्ली घोड़ा, लिल्ली घोड़ा, घोड़ा लिल्ली रे' का बच्चों के साथ सस्वर पाठन कर ऑनलाइन काव्य गोष्ठी को आनन्दमय बना दिया।  
श्रीमद फाऊंडेशन की ओर से फाऊंडेशन की फाउंडर सदस्य रेखा सिंह जी ने बच्चों के मनोभाव को कविता के रूप में रखा। उनकी स्वरचित कविता थी "आप क्यों नहीं समझते"। बच्चों के द्वारा अपने बड़ों से कुछ सवाल करती यह कविता बालमन की सुंदर अभिव्यक्ति रही। 
आज के कार्यक्रम में क्लास नर्सरी से चतुर्थ वर्ग तक के कुल सत्ताईस बच्चों ने अपनी जीवंत प्रस्तुति दी। श्रीमद के मंच पर एक छोटा भारत उतर आया था। 
अनन्या झा, सीतामढ़ी से चुनमुन थे दो भाई, संस्कार मिश्रा, दरभंगा, आओ भाई आओ, लक्ष्य शर्मा,आसाम से मन के भोले-भाले बादल, लक्ष्य चौहान, इंदौर से जागो समाज के कार्यकर्ताओं (पुरुस्कृत कविता), माही कानूनगो
झाबुआ से पेड़, माही चौहान, उज्जैन से, हम बच्चे हिन्दुस्तान के, कर्म पांडे,  उज्जैन से इन्द्र धनुष जी इतने रंग, प्रवीर सिन्हा, पटना से भ्रूण हत्या, लक्ष आनंद, से नोयडा, our Earth (स्वरचित), प्राक्षी भारतीय, मेरूत, उठो उठो (स्व. अनिल रस्तोगी), कर्तव्य वेदी, इंदौर, भारत देश महान , शुभ्रा फ़िरक़े, उज्जैन से तितली रानी, निवेदिता सिंह कुशवाहा,इंदौर से तितली, कृशा जोशी, उज्जैन से मेरा गाँव, तुशूभ बख़्शी, पुणे, तितली उड़ी, निहारिका, शिवहर से मेरी माँ, आकर्ष भारद्वाज, आरा, माँ मेरी, आर्या श्री, आरा, चिड़िया रानी, पलक, पंजाबी बाग, नई दिल्ली,  मेरे प्यारे पापा, आराध्य शर्मा, उज्जैन से जल ही जीवन, वारिद पाठक,करेरा, शिवपुरी मध्य प्रदेश, चिड़िया, तोता, आरण्या शिवाली, आरा, हम बेटियां, प्रकृति प्रिया, झारखंड जामतारा से कसरत करो, बौंसी, बांका से श्रुति ने पेड़ पर काव्य रचना की प्रस्तुति दी। 
श्रीमद फाऊंडेशन के बाल गतिविधि की सहयोगी  अभिनव बालमन पत्रिका के सह संपादक श्री पल्लव जी ने इसे अनूठा आयोजन कहा। उन्होंने कहा कि लाइव में इस तरह व्यवस्थित आयोजन को देखकर बहुत कुछ सीखने को भी मिला। देश के अलग अलग स्थानों से बाल रचनाकारों को सुनना सुखद रहा। ऐसे मंच के माध्यम से इन बच्चों को यूँ ही प्रोत्साहित करते रहना होगा ताकि इनकी रचनात्मकता लेखन के माध्यम से बेहतर होती रहे।
संचालन दरभंगा से संस्कृति भारद्वाज, उज्जैन से ऐश्वर्या शर्मा, पटना से स्वस्तिका श्री, कलकत्ता से जीवेश मिस्त्री ने मिलकर किया। देश के चार कोने से एक साथ सन्चालन कर इन बच्चों ने जता दिया कि हमारे साहित्य जगत का भविष्य बहुत उज्ज्वल है। 
साहित्यकार नन्दनी प्रनय,रांची, इंदु उपाध्याय,पटना, रश्मि शर्मा, उज्जैन,राहुल कुमार, कलकत्ता से अपनी समीक्षात्मक टिप्पणी से बच्चों का उत्साहवर्धन किया।  डॉ. आरती, मुज्जफरपुर ने धन्यवाद ज्ञापन के साथ बच्चों की हमारे जिंदगी में अहमियत को गजल के रूप में प्रस्तुत कर काव्यमय शाम को खूबसूरत बना दिया। 
अंत में श्रीमद फाऊंडेशन की सचिव ने  सभी मीडिया को धन्यवाद देते हुए 11 मई 2020 को कक्षा पांचवी से आठवीं तक के बच्चों के काव्य गोष्ठी कार्यक्रम की जानकारी दी।
 

Sunday, 3 May 2020

*गुरुमुख से*-दूसरे के कर्मफल हमारे अंदर कैसे और क्यों संचित होते है?*

*आज का सन्देश*
*गुरुमुख से*

*कल हमारे अभ्यास सत्र में एक बहुत जीवंत प्रश्न सामने आया कि दूसरे के कर्मफल हमारे अंदर कैसे और क्यों संचित होते है?*

हमने गुरु-सत्ता के समक्ष यह प्रश्न रख दिया। उनकी ओर से एक बोधकथा सुनाई गई। 
एक राजा कुछ सन्यासियों के लिए भोजन बनवा रहे थे। रसोइया खुले में साफ-सफाई से भोजन तैयार कर रहा था। सभी आनन्द में थे। उसी समय ऊपर एक गिद्ध एक सर्प को चोंच में दबाए वहां से गुजरा। सर्प स्वयं को बचाने के लिए संघर्ष कर रहा था। ठीक भोजन के बर्तन के पास आकर वह गिद्ध के मुख से छूट गया और भोजन में मिल गया। इस घटना को किसी ने नहीं देखा।
नियत समय पर सन्यासी खाने बैठे और जहरीले भोजन को खाकर मृत्यु को प्राप्त हुए।
अब ईश्वर के सामने बड़ा सवाल खड़ा हुआ कि इस घटना का कर्मफल किसे मिलेगा?
राजा और रसोइया को नहीं मिल सकता क्योंकि उन्होंने कोई षड्यंत्र नहीं किया था। गिद्ध भी अपना आहार लें जा रहा था। सर्प भी बचाव कर रहा था।
ईश्वरीय प्रशासन बड़ी चिंता में था, क्योंकि हर कर्म का फल किसी न किसी को भोगना ही है, यह सांसारिक चक्र का नियम है। तब इस कर्म का फल कौन भोगे? कर्मफल तो वही भोगेगा, जो इसको मथेगा। मथने वाले को ही मक्खन मिलता है। मक्खन ही तो कर्मफल है। 
तभी एक दिन एक सन्यासी राजा का पता पूछते शहर में आया। एक बूढ़ी स्त्री उधर से गुजर रही थी। उस स्त्री से भी सन्यासी ने राजा का पता पूछा।
उसने सन्यासी को राजा का पता बता दिया, पर साथ ही बोली, *ध्यान से जाना राजा सन्यासियों को खाना में जहर खिला देता है।*
बस ईश्वरीय सत्ता को समाधान मिल गया। इस सारी घटना का कर्मफल उस बूढ़ी स्त्री के हिस्से में डाल दिया गया।
कुछ दरबारी ने पूछा, आखिर क्यों? घटना के समय वह स्त्री थी नहीं, उसकी कोई हिस्सेदारी नहीं, फिर कर्मफल उसको क्यों?
क्योंकि उसने इस घटना का पोषण किया। उसके मष्तिष्क में,विचार में यह घटना जीवित रही। उसने जीवित रखा, उसमें प्राण डाला, उसने इसे मथा। जिसने प्राण डाला, जिसने छाली को मथा, जो उस घटना को लेकर कर्मशील रहा, कर्मफल उसे ही तो मिलेगा।
गुरुजी ने सहजता से समझा दिया कि दूसरे के कर्म को हम मथेंगे, हम पोषण हम करेंगे तो कर्मफल भी हमें ही मिलेगा, हमें ही भोगना पड़ेगा। 
अपने या दूसरे के अच्छे कर्मों को मथेंगे तो अच्छे कर्मफल मिलेंगे। बुरे कर्मो को मथेंगे तो बुरे कर्मफल मिलेंगे। 
इतनी सी ही तो बात है। 
*कटुता के शब्द, क्रोध के शब्द, आक्रोश के शब्द, वैर-द्वेष के शब्द, आलोचना के शब्द, हंसी के शब्द, दूसरों के कर्मफल को संचित करने के साधन है।*
हम सतर्क रहें। 

*दिव्य प्रेम प्रगट हो रोग-शोक नष्ट हो*
*डॉ. रीता सिंह*
*न्यासयोग ग्रैंड मास्टर*

Saturday, 2 May 2020

क्षमा प्रार्थना

अपनी आत्मग्लानि से छुटकारा और दूसरों के कर्मफल के संचय से बचाव का एकमात्र उपाय है - *क्षमा प्रार्थना*

अपना विचार दें और साथ ही अपने मन में उठ रहे एक सवाल को लिखें।