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Tuesday, 14 April 2020

प्राणायाम का अभ्यास बढ़ाएं - कोरोना से जीतें


प्राणायाम का अभ्यास बढ़ाएं
अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता

आज एक छोटे से कोरोना वायरस ने सारे विश्व की भौतिकतावादी व्यवस्था को तहस-नहस कर दिया है। सभी अपने शरीर बचाने की मुहिम में जुट गए हैं। स्वयं में सिमटना ही इस वायरस से बचने का एकमात्र उपाय बताया जा रहा है। पर सच यह है कि यह भी कोई उपाय नहीं है। उपाय बस इतना है कि खोखला हो गए अपने शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाए आज हम किसी भी संक्रमण को झेलने की स्थिति में नहीं है। 
योग में इसी रोग प्रतिरोधक क्षमता को प्राण-शक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है। जिसकी प्राण ऊर्जा जितनी प्राणवान होगी, वह उतना ही सुरक्षित होगा। शरीर हमेशा विभिन्न प्रकार की बीमारियों के वाहक जीवाणुओं से प्रभावित होता रहता है। पर शरीर की प्राण शक्ति अर्थात रोग प्रतिरोधक क्षमता उसके प्रभाव को समाप्त कर देती है।जिसकी प्राण-शक्ति कमजोर होती है, वह गंभीर बीमारी का शिकार होता है और विभिन्न शारीरिक- मानसिक समस्याओं से आजन्म ग्रसित रहता है। 
योग रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने की एक संपूर्ण प्रविधि है। इसमें यम, नियम, आसन, प्राणायाम,खान-पान, उत्तम विचार-शैली आदि के अभ्यास द्वारा शरीर के प्राण-ऊर्जा को बढ़ाने पर काम किया जाता है। 
प्रतिदिन का बीस से पच्चीस मिनट का योग-पैकेज आजीवन स्वस्थ रहने के लिए, संक्रमण से बचने के लिए काफी है। 
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सबसे ज्यादा कारगर उपाय है - प्राणायाम। जोड़ों के हल्के आसन के बाद सुखासन में बैठकर किसी भी उम्र का व्यक्ति प्राणायाम के अभ्यास द्वारा अपनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ा सकता है। 
किसी भी तरह के योगाभ्यास से पहले जरूरी है रोग प्रतिरोधक प्राकृतिक औषधि जल के सेवन से शरीर स्थित विषैले तत्व बाहर निकाल लिया जाय। इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। योगाभ्यास का दुगुना फायदा मिलता है। पानी या तो सामान्य तापमान पर हो या फिर थोड़ा गुनगुना होना चाहिए। 
प्राणायाम में सबसे उत्तम है अनुलोम-विलोम प्राणायाम, सूर्यभेदन प्राणायाम, चन्द्रभेदन प्राणायाम और प्राणाकर्षण प्राणायाम। इसे एक पैकेज बनाकर 15 मिनट में किया जा सकता है। 
विधि
1. जोड़ों के हल्के आसन कर सुखासन में बैठ जाएं। 
2. मन ही मन स्वस्थ होने का संकल्प लें। 
3. भ्रमर की तरह के आवाज से शरीर में कंपन को महसूस करें। (भ्रामरी प्राणायाम से शरीर के सभी नस-नाड़ियों के अवरोध समाप्त हो जाते हैं।)
4. सूर्य भेदन प्राणायाम करें। बहुत धीमे-धीमे सूर्य नाड़ी यानी दाएं नाक से प्राण वायु को संपूर्ण शरीर में भरें। पेट के फूलने का आभास होगा। आराम अवस्था तक सांस रोकें। बाएं से सांस छोड़ दें। पांच बार यह प्रक्रिया करें। 
6. चन्द्रभेदन प्राणायाम करें। बहुत धीमे-धीमे चन्द्र नाड़ी यानी बाएं नाक से प्राण वायु को संपूर्ण शरीर में भरें। पेट के फूलने का आभास होगा। आराम अवस्था तक सांस रोकें। दाएं से सांस छोड़ दें। पांच बार यह प्रक्रिया करें।
7. पांच बार अनुलोम-विलोम करें। बाएं से लें, दाएं से छोड़े। दाएं से लें बाएं से छोड़ें। हर सांस लेने और छोड़ने के क्रम में सुविधानुसार सांस रोकें। 5 बार यह प्रक्रिया भी करें। 
8. प्राणाकर्षण प्राणायाम। अंत में सहज भाव से बैठ जाये और प्रकृति से, यूनिवर्स से, आती हुई प्रकाश ऊर्जा को सिर के ऊपर से संपूर्ण शरीर में आकर्षित करें। रोम-रोम के पुष्ट होने की भावना से स्वयं को भर दें।
मन ही मन पसन्द का कोई मन्त्र या न्यास योग ऊर्जा उपचार संकल्प दोहराते रहें - " दिव्य आरोग्य प्राप्त हो, रोम-रोम पुष्ट हो।"
9. धन्यवाद ज्ञापन और शांति पाठ के साथ प्रक्रिया समाप्त करें। 
(ध्यातव्य - योग-प्रशिक्षक से सीखकर प्राणायाम करें। अथवा बहुत धीमी गति से सुरक्षित श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया करें।)

डॉ रीता सिंह
संयोजक
न्यास योग एवं तनाव प्रबंधन 
कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा
संपर्क - 7004906203

Monday, 13 April 2020

यम-सूत्र *सत्य* पर चर्चा


*शुभ न्यास दिवस*
*आज का संदेश*
*गुरुमुख से*

हम गुरु संग विमर्श में थे। यम-सूत्र *सत्य* पर चर्चा हो रही थी। हम अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे, आज के समय में सत्यवादी हरिश्चंद्र की तरह जीना संभव है क्या? हम हर समय सत्य बोलें या हमारे सत्य को सामने वाले मान ही लें, यह संभव है!
गुरुजी मुस्कुराए। स्वयं से सत्य बोलने के बारे में आपलोगों का ख्याल है? अपनी सत्यता की परख प्रतिदिन करें। सत्य सिर्फ बोलने तक सीमित नहीं है। यह विचार की सूक्ष्मता है। 
अब एक छोटी कहानी सुनिए। एक परिवार में पति-पत्नी बच्चे हैं। बच्चे बाहर हैं। पति-पत्नी साथ रहते हैं। दुनिया उनको शानदार जोड़ा कहती है। पत्नी बहुत ज्यादा धार्मिक है। सारे कर्मकांड को अपनाती है। शुद्धता का बहुत ध्यान रखती है। 
 पति देवी-देवता, कर्मकांड को नहीं मानते हैं। पर वह मानव को बहुत मानते हैं। किसी भी धर्म, समुदाय का मनुष्य हो उसे गले लगा लेता है। किसी मनुष्य के खिलाफ चाहे कितनी भी भ्रम वाली कहानी आये, जितना भी उसे राष्ट्रविरोधी कहा जाए, उनके मन में नफरत नहीं फैलता।उनमें सुधार की  बात कहते हैं, उनकी समाप्ति, उनसे घृणा की बात उनके मन में नहीं आती है। 
पत्नी मानती है कि उनका पति अधार्मिक है। वह दुखी रहती हैं कि उनके भगवान को वह नहीं मानते हैं। 
पत्नी के विचार का यह सत्य क्या सत्य है?
अब आपलोग इसमें धार्मिकता के सत्य को तलाशिये कि कौन ज्यादा धार्मिक है?
गीता में कृष्ण कहते हैं कि सृष्टि का तत्व मेरा ही अंश है और उससे प्यार करो, इस सत्य के साथ जीने वाला सत्यवादी हुआ या कर्मकांड अपनाते हुए भी इस सत्य से स्वयं को अलग रखने वाला सत्यवादी हुआ। 
अपने अंदर के सत्य का सूक्ष्म निरीक्षण करना ही, उसमें सुधार करना, भ्रम और द्वंद में ना पड़ना, कर्मकांडीय अंधविश्वास से मानवीय रिश्तों को ना तोड़ना ही यम-सूत्र के सत्य तत्व को जीवन में उतारना है। 
हम योगाभ्यासी बनना चाहते हैं, तो इन तथ्यों के प्रति सचेत रहें। 
हमने गुरुजी के चरण स्पर्श किये और *मानवता की सत्यता* को जीवन में उतारने के संकल्प के साथ विदा लिया। 

*दिव्य प्रेम प्रगट हो, मानवता विजयी हो*

Thursday, 9 April 2020

Some nice lines from book "Gurumukh Se" by Dr. Reeta Singh


*मानसिकता बदलाव पर विचार करें*


आज फिर गुरूजी ने प्रश्न किया - *" मानसिकता बदलाव पर क्या काम चल रहा है। कुछ बदलाव आया मानसिकता में।*" 

हमने सहजता से जबाब दिया  - " *पढ़ते तो हैं मानसिकता बदलाव के दस वाक्य। यम-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और  नियम-शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान का पालन करना है, याद है हमें सबकुछ।*"

हँसते हुए वह पुन: पूछते हैं - *" सिर्फ पढने और याद करने से बदलाव आ जायेगा?"*

*" मानसिकता बदलने पर गंभीरता से काम कीजिए, तभी इस पथ पर चलने का कोई फायदा होगा।"*

उनके अनुसार - *"मानसिकता बदलाव यानी द्रष्टा भाव में खुद को विलीन कर देना।"*

हमने कहा - गुरुजी, एक बार पुनः *द्रष्टा भाव* समझा दें। 

*जिस अवस्था में चेतनशील व्यक्ति को भोग का भाव नहीं रहे, वह अवस्था द्रष्टा भाव है।* 

*किसी घटना, किसी परिस्थिति और किसी भाव में उत्तेजित ना हो, परेशान ना हो, दुखी ना हो और बहुत ज्यादा खुश भी ना हो, वह अवस्था द्रष्टा भाव है।* 

*अपनी बड़ाई आप ना करें। किसी भी स्थिति में दूसरे की आलोचना ना करें, यह अवस्था द्रष्टा भाव है।*

*समभाव दृष्टिकोण रखते हुए कर्मपथ पर आगे बढ़ें, यह द्रष्टा भाव है।*

हमने पुनः एक प्रश्न किया, *गुरुजी, यह चेतनशील होना क्या है?*

*मनुष्य वैज्ञानिक रूप से एक विवेकशील प्राणी के रूप में जन्म लिया है।उसमें सोचने और समझने की क्षमता है।उसकी विवेकशीलता ही उसकी चेतन-अवस्था है।* 

*सचेत रहने का गुण ही उसका चेतन-स्वभाव है।*

*वह यदि वैज्ञानिक है, तो सृष्टि के वैज्ञानिक निर्माण के प्रति सचेत रहना ही उसका चेतन-स्वरूप है।*

 *सृष्टि-निर्माण के वैज्ञानिक पक्ष को पकड़कर विभेद की अवस्था से ऊपर उठना ही चेतनशील मनुष्य होना है।* 

*धर्म, जाति, गोत्र, समुदाय आदि के नाम पर हम जिस विभेद में पड़ते हैं, वह अविवेकशील मनुष्य के गुण हैं, ऐसे मनुष्य कभी योग की राह पर नहीं चल सकते हैं।*

*याद रखियेगा योग सिर्फ शरीर की बीमारियों को ठीक करने की चिकित्सा पद्धति नहीं है, यह मानव-गुण को स्वयं में विकसित करने की पद्धति है।* 

*इसलिए आपलोग सिर्फ पढ़िए नहीं, स्वयं को विकसित कीजिए, चेतनशील प्राणी बनिए।*

हमने गुरुमुखी वाणी से स्वयं को प्रखर करने के *संकल्प* के साथ विदा लिया। 

*दिव्य प्रेम प्रगट हो, रोग-शोक नष्ट हो*

Tuesday, 7 April 2020

*पहला न्यास अभ्यास*

शुभ न्यास दिवस 
सभी का दिन शुभ हो 

*पहला न्यास अभ्यास* 
*दिव्य प्रेम प्रगट हो, रोग-शोक नष्ट हो*

यह न्यास संकल्प आपलोग निश्चित मन में स्थापित कर रहे होंगे। 
प्रश्न भी उठता होगा यह *संकल्प क्या है?* 
नर्सरी कक्षा की बच्चों की तरह आपने इस संकल्प को प्रेम से याद किया होगा तो एक विशेष प्रेम की ऊर्जा की अनुभूति से भर गए होंगे। 
*यह पहला न्यास संकल्प - दिव्य प्रेम ही क्यों?*
इस तथ्य को याद रखना जरूरी है कि दो मानव के प्रेम से ही अगले मानव का निर्माण होता है विज्ञान कहता है मानव शुक्राणुओं और अंडाणुओं के मेल से जन्म लेता है। सत्य यह है कि यदि मानवीय प्रेम ना हो तो शुक्राणुओं और अंडाणुओं के मेल से नर नहीं, नर-पिचाश का जन्म हो जाता है, जो मानव स्वरूप में मानव को ही सुरसा की भांति निगलने को तैयार रहता है। 
*दिव्य प्रेम* बहुत सूक्ष्म विश्लेषण है, जिसे समझने से *प्रेम के मानव* का जन्म होता है। 
*न्यास योग* मानव जैसे दिख रहे सभी मानव के अंदर *मानवीय प्रेम* को स्थापित करने के व्यापक उद्देश्य को लेकर चल रहा है।
 
न्यास - *नि: और अस्*  मतलब निगेटिविटी निकलने और पॉजीटिव रखने की प्रक्रिया है। 
इस संकल्प के माध्यम से हम *प्रेम की दिव्यता को अपने अंदर स्थापित करते हैं और अपने अंदर के रोग यानी बीमारी और शोक यानी दूसरों से मिले कष्ट, अपमान, शक, सन्देह आदि को हटाते हैं।*

 
*" दिव्य प्रेम प्रगट हो, रोग-शोक नष्ट हो"*

सादर अभिनन्दन ।

Feedback from our online class participants (dated 5th April 2020)










Monday, 19 August 2019

विश्वास कभी हारता नहीं

न्यास चर्चा चल रही थी। गुरु जी बता रहे थे श्रद्धा और विश्वास से ही इच्छित फल की प्राप्ति संभव है।
हम संशय में थे । उन्होंने एक कथा सुनाई।
जाड़े का दिन था और शाम होने को आई। आसमान में बादल छाए थे। एक नीम के पेड़ पर बहुत से कौए बैठे थे। वे सब बार-बार कांव-कांव कर रहे थे और एक-दूसरे से झगड़ भी रहे थे। इसी समय एक मैना आई और उसी पेड़ की एक डाल पर  बैठ गई। मैना को देखते हुए कई कौए उस पर टूट पड़े।

बेचारी मैना ने कहा- “बादल बहुत हैं इसीलिए आज अंधेरा हो गया है।  मैं अपना घोंसला भूल गई हूँ। इसीलिए आज रात मुझे यहां बैठने दो।“

कौओं ने कहा- “नहीं यह पेड़ हमारा है तू यहां से भाग जा।“

मैना बोली- “पेड़ तो सब ईश्वर के बनाए हुए हैं। इस सर्दी में यदि वर्षा  पड़ी और ओले पड़े तो ईश्वर ही हमें बचा सकते हैं। मैं बहुत छोटी हूँ, तुम्हारी बहन हूँ, तुम लोग मुझ पर दया करो और मुझे भी यहां बैठने दो।“

कौओं ने कहा- “हमें तेरी जैसी बहन नहीं चाहिए। तू बहुत ईश्वर का नाम लेती है तो ईश्वर के भरोसे यहां से चली क्यों नहीं जाती। तू नहीं जाएगी तो हम सब तुझे मारेंगे।“

कौओं को कांव-कांव करके अपनी ओर झपटते देखकर बेचारी मैना वहां से उड़ गई और थोड़ी दूर जाकर एक आम के पेड़ पर बैठ गई। रात को आंधी आई, बादल गरजे और  बड़े-बड़े ओले बरसने लगे। कौए कांव-कांव करके चिल्लाए। इधर से उधर थोड़ा-बहुत उड़े परन्तु ओलों की मार से सबके सब घायल होकर जमीन पर गिर पड़े। बहुत से कौए मर गए।

मैना जिस आम पर बैठी थी उसकी एक डाली टूट कर गिर गई। डाल टूटने पर उसकी जड़ के पास पेड़ में एक खोंडर हो गया। छोटी मैना उसमें घुस गई और उसे एक भी ओला नहीं लगा। सवेरा हुआ और दो घड़ी चढऩे पर चमकीली धूप निकली। मैना खोंडर में से निकली पंख फैला कर चहक कर उसने भगवान को प्रणाम किया और उड़ी।

 पृथ्वी पर ओले से घायल पड़े हुए कौए ने मैना को उड़ते देख कर बड़े कष्ट से पूछा- “मैना बहन! तुम कहां रही तुम को ओलों की मार से किसने बचाया।“

मैना बोली- “मैं आम के पेड़ पर अकेली बैठी भगवान से प्रार्थना करती रही और भगवान ने मेरी मदद की।“
 ईश्वर वास्तव में आपके विश्वास की ऊर्जा है सभी आपत्ति-विपत्ति में  सहायता करती है।

Thursday, 15 August 2019


रक्षा-बंधन श्रावणी-पूर्णिमा और स्वतन्त्रता दिवस

पूर्णिमा की रात्रि को गुरुजी के चरण-स्पर्श से रोम-रोम पूर्ण चांद की तरह दमक उठता है। चांदनी रात की धवलता संपूर्ण शरीर से छिटकती महसूस होती है। श्वेत प्रकाश के एक दिव्य सुरक्षा घेरे के बीच स्वयं को पाती हूँ।
गुरुजी कहते हैं, व्यक्तित्व में पूर्णता का अहसास ही रक्षा के  भाव से भर जाना है। यही रक्षा-बंधन है और यही स्वतन्त्रता भी। पूर्णिमा का चांद जिस प्रकार पूर्णता में अपने प्रकाश से संपूर्ण ब्रह्मांड को आनन्दित कर देता है, उसे पूर्णिमा के दिन प्रकाश के फैलाव के लिए क्षेत्र-विशेष नहीं चुनना पड़ता है। सारा ब्रह्मांड उसका होता है, जब सारा ब्रह्मांड ही उसके प्रकाश से प्रकाशित है, तब उसे किस अंधेरे का डर! उसका अपना प्रकाश ही उसका रक्षा-सूत्र है। अपने प्रकाश के घेरे में वह सुरक्षित है।
पूर्णिमा के दिन रक्षा-बन्धन का यही संदेश है कि आप पूर्णिमा की चांद की तरह पूर्ण हो जाओ। आपकी पूर्णता का प्रकाश आपका रक्षा-सूत्र होगा।
चन्द्रमा का संबन्ध मन से भी है। मन की संकीर्णता, मन की गुलामी भी असुरक्षा के भाव से आपको भर देता है। आप अप्रत्यक्ष मानसिक गुलामी के शिकार होते जाते हैं। इस मानसिक गुलामी के जकड़न से स्वयं को निकलना भी पूर्णता है।
अपनी पूर्णता के रक्षा-सूत्र के घेरे में आप भी सुरक्षित रहोगे और जो आपके संपर्क में आएगा, वह भी सुरक्षित हो जाएगा। सुरक्षा करने के योग्य भी हो जाएगा।
रक्षा-बंधन का यही संदेश है कि हर बहन पूर्णिमा के चांद की तरह अपनी ऊर्जा का विस्तार करे और अपने प्रकाश के रक्षा-सूत्र से अपने भाई की कलाई सजाए।
 हर भाई भी  पूर्णिमा की चांद की सी संपूर्ण ऊर्जा  का स्वयं में विकास करे। वह चांद की तरह विशाल ह्रदय बने।जैसे चांद अपनी रोशनी से संपूर्ण ब्रह्मांड को बिना किसी भेद-भाव के प्रकाशित करता है। वैसे ही वह हर बहन की ओर रक्षा-प्रकाश का विस्तार करे।
विवेक के प्रकाश से यह संभव है। न्यास योग इस विवेक के प्रकाश को प्रकाशित करने की सरल प्रक्रिया है। हम इससे जुड़ें और रक्षा के धवल प्रकाश से स्वयं को आच्छादित करें।
गुरु कृपा ही केवलम

Wednesday, 4 April 2018


Shrimad Annual Meet Cum Nyas Yog Sammelan
7 and 8 April , 2018
Bihar Hindi Sahitya Sammelan ,
Kadamkuan, Patna - 3 
Time : 9 to 5.30


Saturday, 5 November 2016

नि:शुल्क व्यक्तित्व निर्माण कार्यशाला 1 -3 नवम्बर 2016 नवानी, झंझारपुर, बिहार।



‘व्यक्तित्व निर्माण कार्यशाला’ का समापन
पुरस्कार वितरण
इंस्टिच्यूट ऑफ हिलिग एंड अल्टरनेटिव थेरेपी के संरक्षण में श्रीमद फाउंडेशन एवं बच्चों की पत्रिका अभिनव बालमन के संयुक्त तत्वाधान में श्री मद कार्यालय, नवानी ग्राम, पुरवारी टोला पर चल रहे तीन दिवसीय 'व्यक्तित्व निर्माण कार्यशाला' समापन समारोह में विजेता प्रतिभागी के बीच पुरस्कार वितरण किया गया। पुरस्कार में विजेता प्रतिभागियों को प्रशस्तिपत्र, सरस्वती की प्रतिमा और अभिनव बालमन की प्रति दी गई। पुरस्कार वितरण नवानी ग्राम के सरपंच श्री रामगोपाल मण्डल, नवानी ग्राम के पूर्व मुखिया श्री विश्वनाथ कामत और पैक्स अध्यक्ष श्री अरविन्द नारायण चौधरी ने किया। नन्हे प्रतिभागियों को प्रशस्तिपत्र एवं स्केच दिया गया। अन्य को प्रशस्तिपत्र और अभिनव बालमन की प्रति दी गई।
न्यास योग में निम्न प्रतिभागियो ने पुरस्कार पाया।
प्रथम पुरस्कार - शुभम कुमार, कक्षा- दशम, लाल दास उच्च विद्यालय, खड़ाैआ
दितीय पुरस्कार - वर्षा कुमारी, कक्षा-अष्टम, उत्क्रमित मध्य विद्यालय, नवानी
तृतीय पुरस्कार - सिमरन सिंह, कक्षा-षष्टम, बी ड़ी जी एच एस स्कूल
आभास आनन्द, कक्षा - अष्टम, राजकीय मध्य विद्यालय, खड़ाैआ
सांत्वना पुरस्कार - आभास आनन्द, साक्षी कुमारी और अभय कुमार।
लेखन में निम्न प्रतिभागियों को पुरस्कृत किया गया।
प्रथम पुरस्कार - अभिजीत कुमार सिंह कक्षा- अष्टम, डी ए वी पब्लिक स्कूल
दितीय पुरस्कार - सिद्धार्थ कुमार, कक्षा-अष्टम, उत्क्रमित मध्य विद्यालय, नवानी
तृतीय पुरस्कार - संदीप सिंह, कक्षा-षष्टम, केंद्रीय विद्यालय, दरभंगा
सांत्वना पुरस्कार - भावना कुमारी, विघ्नेश कुमार और रिशु कुमारी।
चित्रकला -
प्रथम - अभिजीत कुमार सिंह
द्वितीय - भावना कुमारी
तृतीय - अभिषेक कुमार
सांत्वना - आरती कुमारी, राजकुमारी।
न्यास योग के जज नवानी ग्राम के शम्भुनाथ झा और न्यास योग मास्टर डॉ रीता सिंह थी।
हिन्दी-लेखन के जज उत्क्रमित मध्य विद्यालय, नवानी के शिक्षक श्री अवधेश कुमार एवं झंझारपुर के विनय झा थे।
चित्रकला का प्रशिक्षण मधुबनी पेंटिग की स्थानीय कलाकार श्रीमती प्रभा सिंह ने दिया। चित्रकला प्रतियोगिता में जज की भूमिका श्रीमती प्रभा सिंह श्री रामगोपाल मण्डल एवं ग्रामीणों ने निभाया।
धन्यवाद ज्ञापन श्रीमद फाउंडेशन की सचिव डॉ श्रीमती रीता सिंह ने किया।