*शुभ न्यास दिवस*
*आज का संदेश*
*गुरुमुख से*
हम
गुरु संग विमर्श में थे। यम-सूत्र *सत्य* पर चर्चा हो रही थी। हम अपनी
प्रतिक्रिया दे रहे थे, आज के समय में सत्यवादी हरिश्चंद्र की तरह जीना
संभव है क्या? हम हर समय सत्य बोलें या हमारे सत्य को सामने वाले मान ही
लें, यह संभव है!
गुरुजी मुस्कुराए। स्वयं से सत्य
बोलने के बारे में आपलोगों का ख्याल है? अपनी सत्यता की परख प्रतिदिन करें।
सत्य सिर्फ बोलने तक सीमित नहीं है। यह विचार की सूक्ष्मता है।
अब
एक छोटी कहानी सुनिए। एक परिवार में पति-पत्नी बच्चे हैं। बच्चे बाहर हैं।
पति-पत्नी साथ रहते हैं। दुनिया उनको शानदार जोड़ा कहती है। पत्नी बहुत
ज्यादा धार्मिक है। सारे कर्मकांड को अपनाती है। शुद्धता का बहुत ध्यान
रखती है।
पति देवी-देवता, कर्मकांड को नहीं मानते
हैं। पर वह मानव को बहुत मानते हैं। किसी भी धर्म, समुदाय का मनुष्य हो उसे
गले लगा लेता है। किसी मनुष्य के खिलाफ चाहे कितनी भी भ्रम वाली कहानी
आये, जितना भी उसे राष्ट्रविरोधी कहा जाए, उनके मन में नफरत नहीं
फैलता।उनमें सुधार की बात कहते हैं, उनकी समाप्ति, उनसे घृणा की बात उनके
मन में नहीं आती है।
पत्नी मानती है कि उनका पति अधार्मिक है। वह दुखी रहती हैं कि उनके भगवान को वह नहीं मानते हैं।
पत्नी के विचार का यह सत्य क्या सत्य है?
अब आपलोग इसमें धार्मिकता के सत्य को तलाशिये कि कौन ज्यादा धार्मिक है?
गीता
में कृष्ण कहते हैं कि सृष्टि का तत्व मेरा ही अंश है और उससे प्यार करो,
इस सत्य के साथ जीने वाला सत्यवादी हुआ या कर्मकांड अपनाते हुए भी इस सत्य
से स्वयं को अलग रखने वाला सत्यवादी हुआ।
अपने अंदर
के सत्य का सूक्ष्म निरीक्षण करना ही, उसमें सुधार करना, भ्रम और द्वंद में
ना पड़ना, कर्मकांडीय अंधविश्वास से मानवीय रिश्तों को ना तोड़ना ही
यम-सूत्र के सत्य तत्व को जीवन में उतारना है।
हम योगाभ्यासी बनना चाहते हैं, तो इन तथ्यों के प्रति सचेत रहें।
हमने गुरुजी के चरण स्पर्श किये और *मानवता की सत्यता* को जीवन में उतारने के संकल्प के साथ विदा लिया।
*दिव्य प्रेम प्रगट हो, मानवता विजयी हो*
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