*मानसिकता बदलाव पर विचार करें*
आज फिर गुरूजी ने प्रश्न किया - *" मानसिकता बदलाव पर क्या काम चल रहा है। कुछ बदलाव आया मानसिकता में।*"
हमने
सहजता से जबाब दिया - " *पढ़ते तो हैं मानसिकता बदलाव के दस वाक्य।
यम-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और नियम-शौच, सन्तोष, तप,
स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान का पालन करना है, याद है हमें सबकुछ।*"
हँसते हुए वह पुन: पूछते हैं - *" सिर्फ पढने और याद करने से बदलाव आ जायेगा?"*
*" मानसिकता बदलने पर गंभीरता से काम कीजिए, तभी इस पथ पर चलने का कोई फायदा होगा।"*
उनके अनुसार - *"मानसिकता बदलाव यानी द्रष्टा भाव में खुद को विलीन कर देना।"*
हमने कहा - गुरुजी, एक बार पुनः *द्रष्टा भाव* समझा दें।
*जिस अवस्था में चेतनशील व्यक्ति को भोग का भाव नहीं रहे, वह अवस्था द्रष्टा भाव है।*
*किसी
घटना, किसी परिस्थिति और किसी भाव में उत्तेजित ना हो, परेशान ना हो, दुखी
ना हो और बहुत ज्यादा खुश भी ना हो, वह अवस्था द्रष्टा भाव है।*
*अपनी बड़ाई आप ना करें। किसी भी स्थिति में दूसरे की आलोचना ना करें, यह अवस्था द्रष्टा भाव है।*
*समभाव दृष्टिकोण रखते हुए कर्मपथ पर आगे बढ़ें, यह द्रष्टा भाव है।*
हमने पुनः एक प्रश्न किया, *गुरुजी, यह चेतनशील होना क्या है?*
*मनुष्य
वैज्ञानिक रूप से एक विवेकशील प्राणी के रूप में जन्म लिया है।उसमें सोचने
और समझने की क्षमता है।उसकी विवेकशीलता ही उसकी चेतन-अवस्था है।*
*सचेत रहने का गुण ही उसका चेतन-स्वभाव है।*
*वह यदि वैज्ञानिक है, तो सृष्टि के वैज्ञानिक निर्माण के प्रति सचेत रहना ही उसका चेतन-स्वरूप है।*
*सृष्टि-निर्माण के वैज्ञानिक पक्ष को पकड़कर विभेद की अवस्था से ऊपर उठना ही चेतनशील मनुष्य होना है।*
*धर्म,
जाति, गोत्र, समुदाय आदि के नाम पर हम जिस विभेद में पड़ते हैं, वह
अविवेकशील मनुष्य के गुण हैं, ऐसे मनुष्य कभी योग की राह पर नहीं चल सकते
हैं।*
*याद रखियेगा योग
सिर्फ शरीर की बीमारियों को ठीक करने की चिकित्सा पद्धति नहीं है, यह
मानव-गुण को स्वयं में विकसित करने की पद्धति है।*
*इसलिए आपलोग सिर्फ पढ़िए नहीं, स्वयं को विकसित कीजिए, चेतनशील प्राणी बनिए।*
हमने गुरुमुखी वाणी से स्वयं को प्रखर करने के *संकल्प* के साथ विदा लिया।
*दिव्य प्रेम प्रगट हो, रोग-शोक नष्ट हो*
No comments:
Post a Comment