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Tuesday, 7 April 2020

*पहला न्यास अभ्यास*

शुभ न्यास दिवस 
सभी का दिन शुभ हो 

*पहला न्यास अभ्यास* 
*दिव्य प्रेम प्रगट हो, रोग-शोक नष्ट हो*

यह न्यास संकल्प आपलोग निश्चित मन में स्थापित कर रहे होंगे। 
प्रश्न भी उठता होगा यह *संकल्प क्या है?* 
नर्सरी कक्षा की बच्चों की तरह आपने इस संकल्प को प्रेम से याद किया होगा तो एक विशेष प्रेम की ऊर्जा की अनुभूति से भर गए होंगे। 
*यह पहला न्यास संकल्प - दिव्य प्रेम ही क्यों?*
इस तथ्य को याद रखना जरूरी है कि दो मानव के प्रेम से ही अगले मानव का निर्माण होता है विज्ञान कहता है मानव शुक्राणुओं और अंडाणुओं के मेल से जन्म लेता है। सत्य यह है कि यदि मानवीय प्रेम ना हो तो शुक्राणुओं और अंडाणुओं के मेल से नर नहीं, नर-पिचाश का जन्म हो जाता है, जो मानव स्वरूप में मानव को ही सुरसा की भांति निगलने को तैयार रहता है। 
*दिव्य प्रेम* बहुत सूक्ष्म विश्लेषण है, जिसे समझने से *प्रेम के मानव* का जन्म होता है। 
*न्यास योग* मानव जैसे दिख रहे सभी मानव के अंदर *मानवीय प्रेम* को स्थापित करने के व्यापक उद्देश्य को लेकर चल रहा है।
 
न्यास - *नि: और अस्*  मतलब निगेटिविटी निकलने और पॉजीटिव रखने की प्रक्रिया है। 
इस संकल्प के माध्यम से हम *प्रेम की दिव्यता को अपने अंदर स्थापित करते हैं और अपने अंदर के रोग यानी बीमारी और शोक यानी दूसरों से मिले कष्ट, अपमान, शक, सन्देह आदि को हटाते हैं।*

 
*" दिव्य प्रेम प्रगट हो, रोग-शोक नष्ट हो"*

सादर अभिनन्दन ।

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