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Saturday, 29 December 2012

न्यास: शरीर में ईश्वर की स्थापना

Dharm Desk Ujjain | May 18, 2010, 18:01PM IST
 
 
 

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हिंदू शास्त्रों के अनुसार की जाने वाली सभी पूजा-अर्चना, उपासना, यत्र आदि कर्मकांडों में न्यास का काफी महत्व माना गया है। पूजा-अर्चना की अलग-अलग पद्धतियां है और उन्हीं के अनुसार न्यास के विधान में भी अंतर रहता है। न्यास अर्थात् किसी बुरे विचार या वस्तु के स्थान पर उस स्थान के सच्चे स्वामी की स्थापना करना। हमारे शरीर में अहंकार, क्रोध, मोह-माया, द्वेष, छल-कपट आदि बुराई को हटाकर मन मंदिर में परमात्मा की स्थापना करता है, उनका आव्हान करता है अर्थात् उनका ध्यान करना ही न्यास है। न्यास को हर पूजा आदि संस्कारों में अनिवार्य बताया गया है। न्यास तीन प्रकार के बताए गए हैं- अंग न्यास अंग से तात्पर्य है हमारा शरीर। अंग न्यास में नेत्र, सिर, नासिका, हाथ, हृदय, उदर, जांघ, पैर आदि अंगों में ईश्वर के प्रतीक जैसे सूर्य, चंद्र, आदि शक्तियां मानकर उनका आव्हान किया जाता है या उन्हें स्थापित किया जाता है। यह सभी शक्तियां हमारे कर्मो और विचारों को धर्म संगत कार्य करने के लिए प्रेरित करती है। साथ ही हमारी सोच सकारात्मक बनती है। कर न्यास कर अर्थात् हमारे हाथ। हाथ कर्मों का प्रतीक है। हमें हाथों से शुभ कर्म करने चाहिए जिनसे सभी का कल्याण हो। कर न्यास में हाथों की अंगुलियां, अंगूठे और हथेली को दैवीय शक्ति से अभिमंत्रित करते हैं। मातृका न्यास मातृका अर्थात् वाणी। हमारी वाणी में सरस्वती का निवास माना जाता है। मातृका न्यास में साधक माता सरस्वती को वेद मंत्रों की शक्ति से लीला करते हुए अनुभव करता है। हम इस न्यास से बुद्धि, मोह-ममता के बंधन से मुक्त हो जाते हैं।

Friday, 28 December 2012

Success and Abundance within you.



Have you ever seen a rod of iron. Does it attract anything else, No. But once you magnetize
it with a magnet it attracts  so many other iron pieces. and can lift them up to some height based on magnet power.

Same is the case with human being. If you magnetize yourself with nyas yog techniques you can easily attract success and abundance, which is nowhere else but within you. You are a mine of everything you want. You just don't know how to dig it.

Learn to dig the gold mine within you and get everything you want.

Learn Nyas Yog.

Tuesday, 18 December 2012

जीवन में भोजन का महत्त्व

जीवन में भोजन का बहुत महत्त्व है। पर हम इसे बहुत सामान्य रूप में लेते है। जबकि ध्यान देने वाली बात है कि जो भोजन हमारे शरीर को पुष्ट करता है उसका हमारे मन पर कितना ज्यादा असर होता होगा।
सच तो यही है कि हमारे तन के साथ साथ मन का संपोषण भी भोजन के द्वारा ही होता है। भोजन के अभाव में शरीर कमजोर और मन शिथिल हो जाता है। दूसरे शब्दों में भोजन मानव को बल और बुधि प्रदान करता है।
ऐसी स्थिति में भोजन की प्रक्रति पर ध्यान देना जरुरी है। भोजन में हम दो तरह की चीजे लेते हैं। शाकाहारी और मांसाहारी। हमेशा दोनों की शुद्धता पर चर्चा होती है।
                                                                यहाँ  रामकृष्ण परमहंस की वाणी को याद रखना चाहिए कि
शुकर-मांस खाकर भी यदि मनुष्य ईश्वर की भक्ति करता है तो वह उस व्यक्ति से श्रेष्ठ है, जो घी-भात खाता है पर भक्ति से शून्य है। भोजन कभी भी व्यक्ति को आद्यात्मिक नहीं बनाता है। यह मात्र सहायक या बाधक हो सकता है। सहायक और बाधक की सीमारेखा तय करने की बात को ध्यान में रखकर हमें भोजन करना चाहिए। शाकाहारी और मांसाहारी का ध्यान कर नहीं।
                                                भोजन ग्रहण से पूर्ब उसे ईश्वर को समर्पित करना चाहिए ताकि अहसास रहे कि यह  शरीर हाड़-मांस का पुतला मात्र नहीं है इसके अंदर ईश्वर का निवास है और भोजन  शरीर के लिए नहीं शरीर में रह रहे ईश्वर के लिए किया जाता है। जिस दिन से मानव  इस भावना से प्रेरित होकर भोजन को ग्रहण करने लगेगा सहज ही भोजन की शुद्धता के संबंध में उपजने वाली सारी दुविधा ख़त्म हो जाएगी और यह सहायक के रूप में मानव को आद्यात्मिकता के साथ जोड़ने की कड़ी बन जाएगा।



Wednesday, 12 December 2012

मस्तक की ज्योति


  सिर  और  कपाल  के भीतर दो छिद्र होते है, उसे कपालछिद्र कहते है। यह कपालछिद्र  चमकती हुई ज्योति से भरी है। (विज्ञान  भैरव )
                                                       
                                                   

                          पतांजल योगसूत्र में लिखा है कि "मस्तक  की इस ज्योति में ध्यान करने से जो लक्ष्य निरुपित किया जाता है वह पूर्ण हो जाता है। 
न्यास योग मस्तक  की इस ज्योति में ध्यान करने की सही विधि सिखाता है। 


Sunday, 9 December 2012

Disease cured by Reiki and Spiritual Nyas Yog

Reiki and Spiritual Nyas Yog Healing has been able to heal almost any type illness and injury including serious problems like multiple sclerosis, heart diseases and cancer as well as skin problems, cuts bruises, broken bones, headache, colds, flu, sore throat, sunburn, fatigue, insomnia, impotence, poor memory, lack of confidence, fear, drug addiction, marital disharmony etc.

Benefits of Nyas Yog

न्यास योग का महत्त्व 

हमारा  स्वयं का शरीर ऊर्जा का अथाह भंडार है । सामान्य रूप से यह ऊर्जा सोयी हुई रहती है और हमें महसूस नहीं होती । हम थोड़े से काम के बाद ही थकान अनुभव करने लगते हैं ।
न्यास योग वह प्रक्रिया है जिससे हम अपने अंदर की इस सोयी हुई ऊर्जा को जगाते हैं  और जब यह ऊर्जा जग जाती है तो
1. हमारे शरीर का रोग प्रतिरोधक शक्ति पूर्ण विकसित हो जाता है और हम रोग मुक्त हो जाते हैं ।

2. हमारा मस्तिष्क शक्तिशाली हो जाता है और  मस्तिष्क के  शक्ति से हम असम्भव से दिखने वाले कार्य भी बहुत आसानी से कर लेते हैं ।

3. हम अपनी  ऊर्जा  से किसी भी व्यक्ति या वस्तु को हीलिंग दे सकते हैं ।

4. हमारा संपूर्ण व्यक्तित्व निखर कर सामने आता है और हम आकर्षक व्यक्तित्व के मालिक हो जाते हैं ।

5. हमारा जो समय और इनर्जी बीमारियों एवं उनके इलाज में लगता था वह हम अपने व्यक्तित्व विकास एवं लक्ष्य प्राप्ति के कामों में लगाते हैं और सफल होते हैं ।

6. बच्चे जिनकी  लंबाई  (हाईट)  बढ़ने की गति धीमी हो गई है वह स्वतः ही बढ़ जाती है और देखा गया है कि न्यास के बाद 3 से 4 इंच तक लम्बाई तो निश्चित ही बढ़ जाती है ।

7. स्टूडेंट के तनाव में शत प्रतिशत गिरावट आती है एवं आत्मविश्वास ( कॉन्फिडेंस) कई गुना तक बढ़ जाता है ।

8. हमारे द्वारा दिए गए सिम्बल्स से उनके लक्ष्य की प्राप्ति सहजता से हो जाती है ।

9. हम विभिन्न सिम्बल्स के द्वारा बिना आडम्बर के कई तरह के अवरोधों को भी दूर कर सकते हैं जैसे
       लक्ष्य प्राप्ति के लिए सिंबल
       ख .पितर दोषों को दूर करने का सिंबल
       ग .  नवग्रह शांति के लिए सिंबल
       घ . लाभ के लिए सिंबल

10. सोचने की प्रक्रिया को नकारात्मक से सकारात्मक की तरफ ले जाते हैं । धीरे - धीरे अचेतन मन  (सब्कोन्स्यस  माइंड ) सकारात्मक सोचों से भर जाती है और यही सकारात्मक सोच सकारात्मक चीजों को आकर्षित करने लगते हैं एवं सब कुछ स्वतः ही अच्छा होने लगता है जैसा उसे होना चाहिए या जैसा हम चाहते  हैं ।

11. धन्यवाद ज्ञापन के द्वारा अंदर के मैं को निकाला जाता है एवं हर किसी के कार्य का क्रेडिट उसे देना सिखाया जाता है । इससे समाज में अनुशासन की स्थापना होती है ।

12. सबसे प्रेम करना सिखाया जाता है। सबको आदर देना सिखाया जाता है ।

                         संक्षेप में कहा जाय तो हमारी सारी शारीरिक , मानसिक , सामाजिक  एवं  आर्थिक समस्याओं का समाधान न्यास योग के द्वारा  मिल जाता है ।

                                                                                                                          http://www.nyasyog.com
                                                                                                           http://www.facebook.com/nyasyog

उपासना में भावना का महत्त्व

उपासना में भावना का बहुत महत्त्व है। ईश्वर को किसी चीज की कमी नहीं है, जो उन्हें हम दे सकते है। वास्तव में हम जो कुछ भी उन्हें अर्पित करते हैं वे हमारी भावनाओ का ही प्रतिरूप होता है। भावों के पुष्प से ही वे प्रसन्न होते हैं। 

जो मानव स्वयं को ईश्वर को समर्पित कर कोई कार्य करता है और फल के प्रति अनासक्त रहता है उनके सारे कार्य स्वयं ही उपासना बन जाते हैं।  उपासना की शक्ति ही मानव को सर्वत्र जीत हासिल करवा सकती है। परन्तु यह तभी संभव है जब उपासना में विश्वास और श्रद्धा हो। पूर्ण  विश्वास और श्रद्धा ही उपासना का मेरुदंड है। सफलता का दूसरा नाम है। 
                                 न्यास योग उपासना के इसी मेरुदंड को स्वयं में स्थापित करने की तकनीक बताती है। 

Saturday, 8 December 2012

सांतवा घड़ा कभी नहीं भरता

एक बार एक भक्त ने रामकृष्ण परमहंस से पूछा - हमारे जीवन में कभी कोई कमी न रहे इसका क्या उपाय है ?
 रामकृष्ण परमहंस ने एक कहानी सुनाई - एक गाव में एक बरगद का पेड़  था।  उस पेड़ के पास से जो गुजरता  था उसे उस पेड़ से आवाज़ सुनाई पड़ती कि मेरे जड़ में सात घड़े सोने से भरे है इसे साथ ले जाओ।  लोग सुनते और डर कर भाग जाते।  एक दिन एक हज्जाम उस रास्ते से गुजरा।  उसे लालच आ गया।
 वह रात में आया और कुदाल से उस जगह को खोदा उसे सात घड़े मिले . वह उसे घर ले आया . उसने घड़ा खोलकर देखा सभी घड़े जेवर से मुँह तक भरे हुए थे . पर सातवा घड़ा थोडा खाली था . हज्जाम उसे भरने की सोचने लगा . किसी से कह भी नहीं सकता था। धीरे धीरे वह दुबला होने लगा। वह राजा  का हज्जाम  था। राजा ने देखा कि  हज्जाम  दिन  पर दिन  दुबला होता जा रहा है। तब एक दिन  राजा ने उससे कारण  पूछा। हज्जाम  को तो बताना था नहीं उसने कहा कुछ  नहीं  हुआ  है। राजा समझ  गया। राजा ने कहा - कही बरगद पेड़ का सात घडा तो नहीं  उठा लाये।
हज्जाम ने हामी भरी। राजा ने कहा उसे मैंने भी लाया था।  जिन्दा रहना चाहते हो तो वापस रख आओ। क्योंकि  सांतवा घड़ा कभी नहीं भरता।
जीवन का यही सत्य है इसे जितनी जल्दी समझ लो उतनी जल्दी जीवन को जीना सीख जाओगे।
   भक्त ने पुनः पूछा - हमारे जीवन में कभी कोई कमी का अहसास  न हो  इसका क्या उपाय है ?
 इसका उपाय है  रामकृष्ण परमहंस ने कहा। स्वयं को पहचानो। स्वयं में इश्वर को जानो। तुम्हारे अंग अंग में इश्वर है उसे जगाओ और तब तुम पूर्णता के अहसास से भर जाओगे। कोई कमी नहीं रहेगी तुम्हारे जीवन में।

हमारा न्यास योग भी यही कहता है  अपने  अंग अंग के  ईश्वर को  जगाओ और तब तुम पूर्णता के अहसास से भर जाओगे।


Workshop Information for Nyas Yog and Reiki






Nyas Yog : The method was kept  a closely guarded secret and was revealed only to 
very worthy students. Dr. B. P. Sahi revealed this system for the first time 25 years ago. But by
 the grace of God and permission of ascended masters this is being disclosed to general public
 for the benefit of mankind. A 15 minutes simple technique practiced everyday, anytime, brings
 you all sorts of happiness related to mental, physical, social and financial problems.

Reiki :
This is a holistic method of treatment for total relaxation & stress release. A self 
treatment method for mind, body and soul. Also used for absentee healing and professional practice.

Basic 1 Nyas Yog Training Workshop  (one day)
Sunday, 23rd Dec, 2012
Charges : Rs. 500.00 per person
Timings : 11.30 AM to 5 PM

Reiki1 Workshop (Two Days)
Mon 24th and Tues 25th, 2012
Charges Rs. 1000.00 per person
Timings : 11.30 AM to 5 PM

After These Workshops You will Learn
1.       Stress removal technique
2.       Self Chakra balancing for your overall development
3.       Confidence building
4.       Personality development
5.       Technique for enhancing concentration
6.       Mantra for success
7.       Technique to get your wishes fulfilled
8.       Healing for self and others
9.       Distant healing
10.   Technique for being fit, healthy in body and mind.


For Registration Please Call :
99998731916, 9818212459, 09204780693
Venue : 60, Swayam Siddha Society, West Punjabi Bagh, New Delhi-110026


Friday, 7 December 2012

आपको  हमेशा उद्यमी लोगों के संपर्क में रहना चाहिए ।  आलसी लोगों
की संगति आपकी उर्जा  धीरे धीरे खत्म करना शुरू कर देती है ।

Wednesday, 5 December 2012

Healing and Alternative Therapy



                                                                     

Holistic approach to health. “Holistic means viewing a person and his well being from every possible perspective”, taking into account every available concept and skill for the person’s growth towards harmony and balance. It means treating the person and not the disease. It means using mild nature’s manifold methods whenever possible. For the person it would mean engaging himself in a healthier lifestyle to enjoy a higher level of well being. The Holistic approach promotes the inter-relationship and unity of body, mind and spirit. It encourages health, happiness and harmony on all levels of existence.

Alarmed by the side effects, drug reaction and high costs of drugs and failure to give relief –let alone cure in chronic and even common diseases, more and more people are turning to alternative therapies. This is apparent by large number of articles appearing in different magazines all around the world. In Britain alone, one million people have taken to alternative therapies. These therapies consists of herbal remedies used most effectively from the ancient times through Homeopathy, Yoga therapy ,Acupuncture, Flower Remedies, Acupressure, to the most recent technique-Psychic Healing or  Spiritual Healing. All these Therapies are based on a Holistic approach to treatment. They utilize and stimulate the capacity of body to heal itself. Serious researchers are investigating these methods of treatment especially in England, Brazil, and U.S.S.R. and all over the Europe.

One of the fundamental differences between conventional and other forms of medicines is that the former views the human body as somehow fundamentally flawed, always on the verge of disintegration prone to succumb to terrible illnesses from bacteria lurking behind every corner and nature is considered quite an unreliable element. To other therapists, however nature is the only ally, ever present, fully reliable effective and strong. SO MORDERN MEDICINE IS BASED ON ACTIVE INTERVENTION AND OTHERS ON STIMULATION OF THE RECUPERATIVE PROCESSES PRESENT WITHIN THE FUNCTIONAL REPERTOIRE OF THE ORGANISM. 

We are taught about the lymphatic system and immunology, but not of how to make better use of them. If you joined such a programme of Holistic approach to health, you could learn among many other things the following:
To relax easily and experience yourself  to become more aware of the connection between body and mind, clearing away self imposed traumatic experiences by releasing all emotional charge, allowing no place as sorrow, fear, anger and jealousy and learn how to ask what you really want or need.

To take the fullest responsibility for yourself and see exactly how you are contributing to your problems to take charge of your own life in order to create what you want, and achieve what you love.

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