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Tuesday, 18 December 2012

जीवन में भोजन का महत्त्व

जीवन में भोजन का बहुत महत्त्व है। पर हम इसे बहुत सामान्य रूप में लेते है। जबकि ध्यान देने वाली बात है कि जो भोजन हमारे शरीर को पुष्ट करता है उसका हमारे मन पर कितना ज्यादा असर होता होगा।
सच तो यही है कि हमारे तन के साथ साथ मन का संपोषण भी भोजन के द्वारा ही होता है। भोजन के अभाव में शरीर कमजोर और मन शिथिल हो जाता है। दूसरे शब्दों में भोजन मानव को बल और बुधि प्रदान करता है।
ऐसी स्थिति में भोजन की प्रक्रति पर ध्यान देना जरुरी है। भोजन में हम दो तरह की चीजे लेते हैं। शाकाहारी और मांसाहारी। हमेशा दोनों की शुद्धता पर चर्चा होती है।
                                                                यहाँ  रामकृष्ण परमहंस की वाणी को याद रखना चाहिए कि
शुकर-मांस खाकर भी यदि मनुष्य ईश्वर की भक्ति करता है तो वह उस व्यक्ति से श्रेष्ठ है, जो घी-भात खाता है पर भक्ति से शून्य है। भोजन कभी भी व्यक्ति को आद्यात्मिक नहीं बनाता है। यह मात्र सहायक या बाधक हो सकता है। सहायक और बाधक की सीमारेखा तय करने की बात को ध्यान में रखकर हमें भोजन करना चाहिए। शाकाहारी और मांसाहारी का ध्यान कर नहीं।
                                                भोजन ग्रहण से पूर्ब उसे ईश्वर को समर्पित करना चाहिए ताकि अहसास रहे कि यह  शरीर हाड़-मांस का पुतला मात्र नहीं है इसके अंदर ईश्वर का निवास है और भोजन  शरीर के लिए नहीं शरीर में रह रहे ईश्वर के लिए किया जाता है। जिस दिन से मानव  इस भावना से प्रेरित होकर भोजन को ग्रहण करने लगेगा सहज ही भोजन की शुद्धता के संबंध में उपजने वाली सारी दुविधा ख़त्म हो जाएगी और यह सहायक के रूप में मानव को आद्यात्मिकता के साथ जोड़ने की कड़ी बन जाएगा।



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