Translate

Wednesday, 10 April 2013

न्यास का अर्थ

ज्ञानार्णवतंत्र के अनुसार  -
        न्यास  का अर्थ है - स्थापना। बाहर और भीतर के अंगों में इष्टदेवता और मन्त्रों की  स्थापना ही न्यास है।
इस स्थूल शरीर में अपवित्रता का ही साम्राज्य है,इसलिए इसे देवपूजा का तबतक अधिकार नहीं है जबतक यह शुद्ध एवम दिव्य न हो जाये। जबतक इसकी (हमारे शरीर की  )अपवित्रता बनी  है, तबतक इसके स्पर्श और स्मरण से चित में ग्लानि  का उदय होता रहता है। ग्लानियुक्त चित्तप्रसाद और भावाद्रेक से शून्य होता है, विक्षेप और अवसाद से आक्रांत होने के कारण बार-बार मन प्रमाद और तन्द्रा से अभिभूत हुआ करता है। यही  कारण है कि मन न तो एकसार स्मरण ही कर सकता है और न विधि-विधान के साथ किसी कर्म का सांगोपांग अनुष्ठान ही।
                         इस दोष को मिटाने के लिए न्यास सर्वश्रेष्ठ उपाय है। शरीर के प्रत्येक अवयव में जो क्रिया सुशुप्त हो रही है, हृदय के अंतराल में जो भावनाशक्ति मुर्छित  है, उनको जगाने के लिए न्यास अचुक  महा औषधि है।
     शास्त्र में यह बात बहुत जोर देकर कही गई है कि केवल न्यास के द्वारा ही देवत्व की प्राप्ति और मन्त्रसिद्धि हो जाती है। हमारे भीतर-बाहर अंग-प्रत्यंग में देवताओं का निवास है, हमारा अन्तस्तल और बाह्रय शरीर दिव्य हो गया है - इस भावना से ही अदम्य उत्साह, अदभुत स्फूर्ति और नवीन चेतना का जागरण अनुभव होने लगता है। जब न्यास सिद्ध हो जाता है तब भगवान् से एकत्व स्वयंसिद्ध हो जाता है। न्यास का कवच पहन लेने पर कोई भी आध्यत्मिक अथवा आधिदैविक विघ्न पास नहीं आ सकते है और हमारी मनोवांछित इच्छाएं पूर्णता को प्राप्त करती है।

ज्ञानार्णवतंत्र के अनुसार न्यास के प्रकार
     न्यास कई प्रकार के होते है।
1. मातृका न्यास - १. अन्तर्मातृका न्यास  २. बहिर्मातृका न्यास  ३ संहारर्मातृका न्यास
2. देवता न्यास
3. तत्व न्यास
4. पीठ न्यास
5. कर न्यास
6. अंग न्यास
7. व्यापक न्यास
8. ऋष्यादि  न्यास
               इनके अतिरिक्त और भी बहुत से न्यास है,  जिनके द्वारा  हम अपने शरीर के असंतुलन को  ठीक कर शरीर को देवतामय बना सकते है। सभी न्यास का एक विज्ञान है और यदि नियमपूर्वक किया जाय तो ये हमारे शरीर और अंत:करण  को दिव्य बनाकर स्वयं ही अपनी महिमा का अनुभव करा देते है। 

 न्यास का  महत्त्व
न्यास का हमारे जीवन  में बहुत महत्त्व है। जब शरीर के रोम-रोम में न्यास कर लिया जाता है, तो मन को इतना अवकाश ही नहीं मिलता और इससे अन्यत्र कहीं स्थान नहीं मिलता कि वह और कहीं जाकर भ्रमित हो जाय। शरीर के रोम-रोम में देवता, अणु-अणु में देवता और देवतामय शरीर। ऐसी स्थिति में  हमारा मन दिव्य हो जाता है। न्यास से पूर्व जड़ता की स्थिति होती है। जड़ता के चिंतन से और अपनी जड़ता से यह संसार मन को जड़ रूप में प्रतीत होता है। न्यास के बाद इसका वास्तविक चिन्मय  स्वरूप स्फुरित होने लगता है और केवल चैतन्य ही चैतन्य रह जाता है।   
 इसी निमित्त न्यास योग के प्रवर्तक  हमारे गुरु - डा . बी . पी . साही ने न्यास साधना को न्यासयोग में तब्दील किया। इस योग के माध्यम से शरीर, मन और  आत्मा में संतुलन स्थापित करना सिखाया जाता है यही तंत्र, मंत्र और हर साधना का अंतिम लक्ष्य है। न्यास योग के माध्यम से गुरु जन-जन में साधना का सही स्वरूप निरुपित कर देना चाहते है ताकि  समाज का हर व्यक्ति स्वस्थ हो, प्रसन्न हो।             

न्यास का महत्त्व

न्यास का हमारे जीवन  में बहुत महत्त्व है। जब शरीर के रोम-रोम में न्यास कर लिया जाता है, तो मन को इतना अवकाश ही नहीं मिलता और इससे अन्यत्र कहीं स्थान नहीं मिलता कि वह और कहीं जाकर भ्रमित हो जाय। शरीर के रोम-रोम में देवता, अणु-अणु में देवता और देवतामय शरीर। ऐसी स्थिति में  हमारा मन दिव्य हो जाता है। न्यास से पूर्व जड़ता की स्थिति होती है। जड़ता के चिंतन से और अपनी जड़ता से यह संसार मन को जड़ रूप में प्रतीत होता है। न्यास के बाद इसका वास्तविक चिन्मय  स्वरूप स्फुरित होने लगता है और केवल चैतन्य ही चैतन्य रह जाता है।   

Monday, 8 April 2013

न्यास के प्रकार

ज्ञानार्णवतंत्र के अनुसार न्यास के प्रकार 
     न्यास कई प्रकार के होते है। 
1. मातृका न्यास - १. अन्तर्मातृका न्यास  २. बहिर्मातृका न्यास  ३ संहारर्मातृका न्यास
2. देवता न्यास 
3. तत्व न्यास 
4. पीठ न्यास 
5. कर न्यास 
6. अंग न्यास 
7. व्यापक न्यास 
8. ऋष्यादि  न्यास 
               इनके अतिरिक्त और भी बहुत से न्यास है,  जिनके द्वारा  हम अपने शरीर के असंतुलन को  ठीक कर शरीर को देवतामय बना सकते है। सभी न्यास का एक विज्ञान है और यदि नियमपूर्वक किया जाय तो ये हमारे शरीर और अंत:करण  को दिव्य बनाकर स्वयं ही अपनी महिमा का अनुभव करा देते है।  
  

Friday, 29 March 2013

आधुनिकता एवं आध्यात्मिकता के संगम हमारे गुरु - डा. बी. पी.साही के जन्मदिन पर सादर चरण स्पर्श

न्यास योग के प्रवर्तक  हमारे गुरु - डा . बी . पी . साही (गुप्तावधुत श्री योगानन्दनाथ  गिरि ) किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं।  पिछले तीस साल से न्यास योग के माध्यम से लोक कल्याण  के क्षेत्र में अपनी मौन सेवा दे रहे हैं।
                          
                              सरल, सहज, सह्र्दय, कोमल वाणी,  चेहरे पर गौरवमयी मुस्कान और हर पल अदम्य उत्साह से ओत-प्रोत हमारे गुरूजी हमारी शक्ति पुंज हैं।  
                            
                                 पहली बार  जब मैं गुरूजी से मिली तो  उनका मुझसे प्रश्न था - "आप यहाँ क्यों आई हैं। " न्यास योग के एलिमेंट्री क्लास में उनकी ही एक शिष्या के द्वारा वहाँ ले जाई  गई थी मैं। नहीं जानती थी न्यास योग के बारे में और ना ही गुरूजी के बारे में। अचानक के सवाल का कुछ जवाव नहीं सुझा कह गई "आपको ही जानने आई हूँ। " बड़े जोर से हँसे गुरूजी - "मुझे जानने !" 

                            तब से उन्हें जानने की कोशिश में लगी हूँ। उनके जितने करीब जाती हूँ, उतने ही गहरे पाती हूँ। उनकी गहराई का ज्ञान तो हमें नहीं होता, पर पूर्ण विश्वास के साथ उस गहराई में उतरती चली जाती हूँ। जानती हूँ किनारे पर गुरु का हाथ मजबूती से हमें थामे है। 

                           आज आप  हमारे सिर्फ न्यास गुरु नहीं हैं, आध्यात्मिक गुरु भी हैं। परम्परागत गुरु की पहचान से अलग आधुनिकता के लिवास में दिखते हमारे गुरूजी ने साधना के चरम  ऊँचाई  को छू रखा है। आठ  वर्ष की उम्र से ही आपने अपने  गुरु परमहंसावधुत श्री रामानंदनाथ गिरि  संस्थापक, जयंती माता मंदिर, वनहुगली, कलकत्ता  के सानिध्य में जप, ध्यान और कठोर साधना की हर सीढ़ी को लाँघकर माँ आदया की कृपा प्राप्त की है। हमें एहसास है कि माँ आद्या आपकी वाणी में हैं, पर आप निर्लिप्त, सहज और सरल हैं। आपने सिखाया है - "बस अभिमान त्याग दो, सबकुछ मिल जाएगा।  " --

                              सबसे कठिन मानी जाने वाली तंत्र- साधना को गुरूजी ने सरल और सहज बना दिया। उनकी शिक्षा है - प्रवृति पर नियंत्रण, मनोवृति में बदलाव और चित्त शक्ति के विलास में विश्वास ही तंत्र-साधना है।  उनके अनुसार - "तंत्र-साधना कुछ पाने का माध्यम नहीं है, यह तो लोक-कल्याण के लिए स्वयं को मजबूत बनाने  का साधन है। "

      इसी निमित्त उन्होंने न्यास साधना को न्यासयोग में तब्दील किया। इस योग के माध्यम से शरीर, मन और  आत्मा में संतुलन स्थापित करना सिखाया जाता है यही तंत्र, मंत्र और हर साधना का अंतिम लक्ष्य है। न्यास योग के माध्यम से गुरु जन-जन में साधना का सही स्वरूप निरुपित कर देना चाहते है ताकि  समाज का हर व्यक्ति स्वस्थ हो, प्रसन्न हो।  

 By - Dr. Reeta Singh, nyasyog master
 Website - www.nyasyog.com
 Facebook -  www.facebook.com/nyasyog
                                                           
                                          
                         

Thursday, 28 March 2013

शास्त्र में न्यास


ज्ञानार्णवतंत्र के अनुसार  -
          न्यास का अर्थ है - स्थापना। बाहर और भीतर के अंगों में इष्टदेवता और मन्त्रों की  स्थापना ही न्यास है। 
इस स्थूल शरीर में अपवित्रता का ही साम्राज्य है,इसलिए इसे देवपूजा का तबतक अधिकार नहीं है जबतक यह शुद्ध एवम दिव्य न हो जाये। जबतक इसकी (हमारे शरीर की  )अपवित्रता बनी  है, तबतक इसके स्पर्श और स्मरण से चित में ग्लानि  का उदय होता रहता है। ग्लानियुक्त चित्तप्रसाद और भावाद्रेक से शून्य होता है, विक्षेप और अवसाद से आक्रांत होने के कारण बार-बार मन प्रमाद और तन्द्रा से अभिभूत हुआ करता है। यही  कारण है कि मन न तो एकसार स्मरण ही कर सकता है और न विधि-विधान के साथ किसी कर्म का सांगोपांग अनुष्ठान ही। 
                         इस दोष को मिटाने के लिए न्यास सर्वश्रेष्ठ उपाय है। शरीर के प्रत्येक अवयव में जो क्रिया सुशुप्त हो रही है, हृदय के अंतराल में जो भावनाशक्ति मुर्छित  है, उनको जगाने के लिए न्यास अचुक  महा औषधि है।
     शास्त्र में यह बात बहुत जोर देकर कही गई है कि केवल न्यास के द्वारा ही देवत्व की प्राप्ति और मन्त्रसिद्धि हो जाती है। हमारे भीतर-बाहर अंग-प्रत्यंग में देवताओं का निवास है, हमारा अन्तस्तल और बाह्रय शरीर दिव्य हो गया है - इस भावना से ही अदम्य उत्साह, अदभुत स्फूर्ति और नवीन चेतना का जागरण अनुभव होने लगता है। जब न्यास सिद्ध हो जाता है तब भगवान् से एकत्व स्वयंसिद्ध हो जाता है। न्यास का कवच पहन लेने पर कोई भी आध्यत्मिक अथवा आधिदैविक विघ्न पास नहीं आ सकते है और हमारी मनोवांछित इच्छाएं पूर्णता को प्राप्त करती है।                

Sunday, 17 March 2013

The Holistic Philosophy

Nurture and nourish the entire being - the body, the mind and the spirit. If we ignore any of these areas, we are incomplete. We lack wholeness.

Begin with body and start with nutritious food. Find a form of exercise that apeals to you. Exercise strengthens your bones and keeps your body young.

For your mind you can go for some sort of spiritual practice.  Spirituality  is a wonderful way to quite the mind and allows your own knowings to come to the surface.

Nyas yog is an integrated spiritual technique. It is in itself a complete package of self development. In this technique we do chakra balancing, Mantra chanting, program our mind for positive thinking and learn to live with gratitude. Exercise and spiritual practice both are included in nyas yog.

We don't have all the answers for everyone. We just teach you the technique to explore your own powers. By using right method you connect to GOD and all your prayers are answered.

Saturday, 16 March 2013

अगर अपनी आँखों में आंसू भर लोगे

अगर अपनी आँखों में आंसू भर लोगे तो दुनिया धुन्धली दिखाई देगी।

हम सब जब तब शिकायत करते रहते हैं। पर कुछ तो हमेशा ही बिना किसी बात के ही शिकायत करते रहते हैं। वो जहाँ भी हैं अपनी जिन्दगी में, वो जो कुछ भी कर रहे हों या जो कुछ भी इनके साथ हो रहा हो वो हमेशा शिकायत ही करते हैं। ट्रेफिक बहुत बुरा है , मौसम बहुत गरम या ठंडा है। लोग बहुत कठोर हैं। नौकर बहुत आलसी है।और भी जैसे कोई मुझे समझता नहीं, कोई मेरी तारीफ नहीं करता। कोई नहीं जानता मेरे साथ क्या हो रहा है। कोई मेरी परवाह नहीं करता। कोई मेरी मदद नहीं करता।

जो हमेशा शिकायत ही करते रहते हैं वो अपनी जिम्मेदारी या अपने काम की जिम्मेदारी नहीं लेते। उनसे पुछो कि उनके लक्ष्य पुरे क्यों नहीं हुए तो वो कई बहाने बनाएँगे। उनकी उर्जा और दिमाग इतना केन्द्रित होता है दूसरों की बुराइयाँ निकलने में कि वो अपने लक्ष्य की ओर ध्यान नहीं लगा सकते।कितना थकन देने वाला और निरर्थक होते हैं इनकी लगातार शिकायतें। वो अपनी ही   ताकत और कार्य क्षमता को कम कर लेते हैं।

चलो इन चीजों पर ध्यान देना  बंद कर दें जो गलत है बल्कि उन चीजों पर ध्यान दें जो सही है।हम उनकी तरफ न देखें जो हमारे पास नहीं है बल्कि वो देखें जो हमारे पास है या हमारे लिए है।चलो वक्त निकालें तारीफ करने  के लिए लोगों की जो वो हैं न की सिर्फ उनकी बुराइयों पर ध्यान दें।

जब हम किसी को लगातार कोसते हैं या आलोचना करते हैं हम अपनी जिन्दगी में बुराइयों को आकर्षित करते हैं। जब भी हम कुछ बुरा सोचते हैं हम धीरे धीरे उसे मानने लग जाते हैं, और वो हमें सच लगता है या हम उसे सच बना देते हैं।हमारी कल्पना की गई बुराइयां सच होने लगती हैं। पर इसका उल्टा भी सच होता है। जब हम अच्छी  चीजों को मानते हैं हम बेहतर बनते हैं। जब हम सफलता की कल्पना करते हैं और अच्छाइयों की बातें करते हैं सफलता सच में सामने आने लगती है।

जब तुम ईश्वर या किसी को धन्यवाद देते हो तब तुम्हारा दिल बड़ा हो जाता है। उससे तुम्हारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढती है। चिकित्सा अनुसन्धान बताता है की अच्छे भाव जैसे प्यार, कृतज्ञता हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते है और हमारे शरीर को बीमारियों  से बचाते हैं। हमारे मानसिक स्थिति का सीधा असर हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता पर पड़ता है।

अच्छे भावों जैसे कृतज्ञता और ख़ुशी  से होर्मोनेस निकलकर हमारे खून में मिलते  हैं जो हमारे शरीर के प्राकृतिक पेन किलर्स  हैं। हमारे खून की नालियों को फैलाते हैं और हमारे दिल की मांसपेशियों को राहत  देता है। तुम ताकतवर बनते हो।जबकि बुरे भावों जैसे गुस्सा, दुःख, कड़वाहट से बड़ी मात्रा में एड्रेनालाईन हमारे
खून में मिलता है, जिससे खून दिल में कम जाता है, सफ़ेद रक्त कोशिकाओं की रफ़्तार धीमी हो जाती है।
कृतज्ञता से अच्छे हारमोंस निकलते हैं जो बुरे हारमोंस निकलने नहीं देते  जिससे हम लम्बा और स्वस्थ्य जीवन जीते हैं।
जब तुम कृतज्ञता पर ध्यान देते हो तब तुम उन सभी चीजों पर ध्यान देते हो जो  तुम्हारी जिंदगी में अच्छी हैं, जिनसे ईश्वर उत्पन्न होते हैं। तुम अध्यात्मिक जनरेटर से जु ड़   जाते हो।अपनी परेशानियाँ देखोगे तो वो कई गुना बढ जाएंगी  और अपनी खुशियाँ गिनोगे तो वो भी ज्यादा बढेंगी और ज्यादा ख़ुशी देंगी। ज्यादा धन्यवाद देने वाले बनो न की शिकायत करने वाले, तब तुम्हारी परेशानियाँ सँभालने योग्य हो जाएंगी।
क्यों न अच्छी चीजों को अपनी जिंदगी में आमंत्रण दें।

Saturday, 9 March 2013

Throat Chakra : Thyroid Gland


When you balance your throat chakra with nyas yog the thyroid gland gets activated. Functions of thyroid gland are as follows:

The thyroid is a butterfly-shaped gland that sits low on the front of the neck. Your thyroid lies below your Adam’s apple, along the front of the windpipe. The thyroid has two side lobes, connected by a bridge (isthmus) in the middle. When the thyroid is its normal size, you can’t feel it.
Brownish-red in color, the thyroid is rich with blood vessels. Nerves important for voice quality also pass through the thyroid.

The thyroid secretes several hormones, collectively called thyroid hormones. The main hormone is thyroxine, also called T4. Thyroid hormones act throughout the body, influencing metabolism, growth and development, and body temperature. During infancy and childhood, adequate thyroid hormone is crucial for brain development.

Wednesday, 6 March 2013

Third Eye : Pituitary Gland



Pituitary Gland:
It is a small gland which weighs 500 mg. It hangs from a part of the forebrain, diencephalon. There is an area in the diencephalon, called the hypothalamus. Pituitary gland hangs from this area of the brain by means of a stalk called infundibulum. Three different areas can be recognized in the pituitary gland, if its section is examined under the microscope.
The anterior part is called adenohypophysis. “Six different hormones are secreted from this part. They are:
Growth hormone (CG):
It promotes the growth of the body during early life when the animal is growing. It influences the growth of long bones and muscles. Excess secretion of this hormone during this period will lead to gigantism, which means an abnormal condition of overgrowth. On the other hands, less secretion of growth hormone will stunt or retard the growth leading to dwarfism, which is an abnormal condition of undergrowth. In adults, growth hormone production is stopped.Growth hormone production is increased by exercise, fasting and sleep.
Thyroid stimulating hormone (TSH):
Controls the growth and function of outer part of the adrenal gland, called adrenal cortex. Pituitary gland secretions control the activities of other endocrine glands. For this reason, pituitary gland is called master gland of the body.
Prolactin or Luteotrophic hormone (LTH):
It controls the secretion of milk in the mammary gland. In the male, prolactin hormone brings about a change in behavior with the result that the male beings to pay attention to the care of the eggs or the young. This is called parental care.
Follicular stimulating hormone (FSH):
It is a gonadotrophic hormone in that it influences the gonad. Gonad in male is the testis and in the female is the ovary. In males, it goes to the testis and influences the somniferous tubules, finally leading to increase production of sperms. In the female, FSH goes to the ovary and causes the ovum to mature.
Luteinizing hormone (LH)
It is also a gonadotrophic hormone. In the male, it goes to the testis and inside the testis it influences the leydig cells to secrete testosterone hormone. The secretion of testosterone influences the development of secondary sexual characters. Secondary sexual characters are those which allow us to distinguish a male from a female in appearance. Beard in man may be taken as an example.


The posterior part of pituitary gland is termed neurohypophysis. From this part two hormones are released:
Oxytocin:
This hormone brings about contraction in the wall of the uterus at the time of birth of animal. When oxytocin sets the contraction of the uterine wall, this causes a kind of pain to the mother, termed labour pain.
Vasopressin:
This hormone is also called antidiuretic hormone (ADH). It influences the areas of nephron so that water may be reabsorbed and brought back to the blood. In this way, the volume of urine is reduced.
Pituitary gland is under the control of hypothalamus. The latter produces a number of release factor (RF). For each hormone of the pituitary gland, there is a release factor, which controls the release of the hormone into the blood.

Friday, 15 February 2013

न्यासयोग के द्वारा चक्र संतुलन

हमारे शरीर में मूल रूप से सात अंत श्रावित ग्रंथियां होती है। ये अंत श्रावित ग्रंथियां हमारे शरीर की आवश्यकता के अनुसार हार्मोन्स तैयार करती है। इन हार्मोन्सो के द्वारा ही हमारे शरीर की हर गतिविधि संचालित होती है।
ये सातो ग्रंथि हमारे सुक्ष्म शरीर में स्थित  सात चक्रों से जुडी होती है वास्तव में स्थूल शरीर में स्थित ये सात अंत श्रावित ग्रंथियाँ सूक्ष्म शरीर में स्थित चक्रो के प्रतिरूप है। यदि इन चक्रों को संतुलित कर लिया जाए तो ये ग्रंथियां सुचारू रूप से काम करते हुए शरीर को स्वस्थ रखती है।
                              जब हम इन चक्रों के संतुलन का तरीका जान लेते है तब शरीर के हर गतिविधि पर अपना नियंत्रण पा लेते है और इसको स्वस्थ रखना हमारे नियंत्रण में हो जाता है।

सातों चक्र एवम उनसे जुडी ग्रंथियाँ  : -

           चक्र                                                                 अन्तश्रावित ग्रंथियाँ 

  1. मूलाधार चक्र                                                             एड्रिनल ग्रंथि 

  2. स्वाधिष्ठांन  चक्र                                                         गोनेड्स ग्रंथि 
           
  3. मनीपुर  चक्र                                                             पैन्क्रियाज ग्रंथि 

  4. हृदय चक्र                                                                  थाइमस  ग्रंथि 

  5. विशुद्ध चक्र                                                                थाइराइड  ग्रंथि 

  6. आज्ञा चक्र                                                                पिट्यूटरी  ग्रंथि

  7. सहस्त्रार चक्र                                                             पीनियल ग्रंथि  

                           
                                  न्यासयोग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे चक्र संतुलन करने का तरीका  सिखाया जाता है। प्रथमत: इसमें सभी चक्रो के संतुलन की विधि सिखाई जाती है। उसके बाद व्याधि विशेष को समाप्त करने संबंधी चक्र संतुलन की विधि बताई जाती है। सबसे अहम् बात न्यासयोग में न सिर्फ  व्याधि विशेष का निदान मिलता है बल्कि जीवन से जुडी तमाम समस्याओं का समाधान भी मिलता है।

Wednesday, 13 February 2013

Tuesday, 12 February 2013

Nyas Meaning

Nyas means establishment. It means establishment of your own desired God within your desired body organ accompanied by chanting of mantras. This is done to relax out the tired out body or any specific organ and to fill it with new energy. Nyas is an important method to remove dosh (inefficiency) of our body. Nyas is an important spiritual method in Hinduism to reactivate human emotions and to re-establish lost energy among different organs, of lost joy in various unliving beings too. It is often done before starting of any good work.
Practicing Nyas has been since Vedic times and is fore runner of Reiki.

Source : http://en.wikipedia.org/wiki/Nyas

Saturday, 9 February 2013

Mantra Shakti

मंत्र शब्दों के संग्रह को कहते हैं । यह संस्कृत भाषा का एक महत्ब्पूर्ण शब्द है ।
प्रत्येक मंत्र की एक विशेष प्रकार की कम्पन आवृत्ति (vibration )  होती है जो
उर्जा के विभिन्न स्तर को आकर्षित करती है एवं  इन मन्त्रों के एक निर्धारित
संख्या तक उच्चारण से हमें कॉस्मिक एनर्जी ('life force ') से जुड्रने में मदद
मिलती है ।
मन्त्रों का प्रयोग प्रकट इरादे , कल्याण के  लिए सार्वभौमिक उर्जा को बुलाने
और व्यक्तिगत तरक्की के लिए होता है ।
मन्त्रों का प्रयोग करके हम अपनी उर्जा के स्तर को संतुलित कर सकते हैं
और स्वास्थ्य प्राप्त कर सकते हैं ।
जब मन्त्रों के उच्चारण से हम अपनी अध्यात्मिक चेतना को जगाते हैं तो यह
न सिर्फ हमें बल्कि  हमारी पिछली सात पीढ़ियों को  और अगली सात पीढ़ियों
को भी शांति प्रदान करती है ।
मंत्र हमारे शरीर, मन और भावनाओं को नियंत्रित करने में मदद करते हैं ।

Wednesday, 23 January 2013

कर्म का स्वरूप

आमतौर पर कर्म की परिणति के रूप में हम फल की आशा रखते हैं। ये सहज मानव प्रवृति है और ठीक भी है। पर इस सोच के साथ हम याद नहीं रखते कि हर कर्म की प्रतिक्रिया कर्म के अनुरूप होती है। विज्ञान ने भी ये बात सिद्ध कर दी है। न्यूटन का तीसरा नियम बतलाता है कि प्रत्येक क्रिया के विपरीत उसी के अनुरूप प्रतिक्रिया होती है। स्वभाविक है जब हम कोई कर्म करते है तो उसका फल उस कर्म में लगाए गये उर्जा के अनुरूप मिलता है। यदि कर्म में हमने 100 प्रतिशत दिया है तो फल निश्चित ही 100 प्रतिशत मिलेगा।
पर हम करते क्या है?
पूरी निष्ठा से कर्म तो नहीं करते पर पूरी निष्ठा से फल की आशा में लगे रहते है और फल प्राप्ति में थोड़ी कमी रह गई तो तनाव में आ जाते है। नकारात्मक व्यहार करने लगते है। जरुरत कर्म को 100 प्रतिशत देने की है कर्म का स्वरूप स्वत: पूर्ण फल देनेवाला हो जायगा।


Tuesday, 1 January 2013

Nyas Yoga Healing training held

TNN Mar 24, 2011, 04.28am IST
PATNA: The Institute of Healing and Alternative Therapy on Wednesday organised a free Nyas Yoga Healing training for women on the occasion of Bihar Diwas celebration. The women, including teachers, were imparted this training by a team of healers led by the reiki master and founder president of the institute, Dr B P Sahi. He said that this training for women was special as they were explained about its benefit in improving their intellect, financial condition, career prospect and other aspects of life.